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________________ बाई जितमती एवं उसके समकालीन कांध ३. वर्धमान गीत रागु मलार सकल जिगेसर ध्याउ', सरसं आधारे जी। गुण गांज श्री वीर जिणेसर बुद्धि अणुसारे जी। गुणा गाइसै श्री वीर जिणबरु, बुधि के अनुसारि । तसु नाम लीमा होइ नय निधि भेटिया भवपार । सांगानधरि प्रतिबिंद्ध सोभिता, हेम वर्ण गहीर । बंदह शुभ बीयहु वीर जिपवर, सत्त हष सरीर ॥१॥ ए जो कुडल पुरिहि अवतरै भयऊ अनंदी जी। रशीशा दे ही ऊपनी सिधारथ नंदो जी। तिशलादे माता उरि उपनं राय सिद्धारथ नंदणो। तसु इन्द्र प्राग माइ नच देव दुदभी वाजगो। जिम मेष गजित मोर नाचित चात्रिय करति अनंद । तिम पेखि भवियह वीर जिणधरू, चैइसमउंजिणंदु ॥२॥ ए जो तीस वरस लगु जिगवा, मुज्यो ग्रिह वासी जी। पुणु ज्जुरण तिगगा समु जाणिरू, लीय वन वासो जी। वनवासु ले व्रत भार धग्यि. लोयंतीयह जुहारीय । दश अळू दोगह रहित स्वामी, जीष गण सा धारीय । दाइदश वरिस छद्मस्त रहिये, इन्द्र नासणु कपिय । मौ वर्षमान जिणंद दह, सब भत्र खय कारियं ॥३॥ ए जो केवल ग्यानु ऊपाया, मुनिजन भाया जी । तह गोप्सम प्राविहि ग्यारा गणहर पाया जी। गोत्तम श्रोत्तम प्रम निरौत्तम मयल मरणहर प्राइया । बारणीय के परगासु हुवो, अमरगण जय कारीया। सो अतिमै जिणु नमी भयीय हु चतीमती रायरू ॥४॥ एजो तीस वरस फिरि जिग्णयम संबोध्या मानो जी । पुग अंत कालु प्राय जारिहा पूरा सुभ ध्यानो । शुभ ध्यान पूग कर्म चूरा पंचमी गति पाइया । पावापुरिहि निर्वाण प्रानकु भव्य जन नसांसिया । कवि बेरह नंदणु मनि अनंदणु धन्नपाल गाइया । महु सयल बंछितु होऊ स्वामी वीर जिणु के कारिया |५| ॥ इति श्री वर्धमान गीत समाप्ता ।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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