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धनपाल कवि
२. मेमोजिन वंदना
राग सोरठी पणो अादि जिणंदो अहि पणयां होइ अनंदो । गुण प्रगट कर निशिर्षदो, है गाउं नेमिजिरणदी। गुण माइस श्री मेमि जिपबर, सयल सुल्ल दातारा जाहि नाम लीया दुरित नास, गुणह गरगत न पार | अंबावती प्रतिव्यंन शोभिता स्याम वां गहीर । मंदहु सुभ वीयहु नेमि जिणु, दोइ अनु धनुष शरीक ।।१।। सूरीपुरह उपन्नो, राई समद विजे सुत धन्नो । बर लक्षण गुण संपुलो, सिबवेकी कृषि रतन्नो । सिवदेवी माता जरि उपन्नो, समल सुरपति माइया । से मेर सिहरा करि महोछा, इंद्र प्रागै मच्चिया। तिहु ग्यान करि संजुत, दीस सुन्दरा प्राकार ।
दहु सुभ वीयहु नेमि जिरणवरु, जादम बंस सिणगारु ।।२॥ हलि समवि गोविदो, तुमि उग्रसेरिण धी मंगो । राजमती खरीय सुसंगो सा परष नेमि जिणंदो। नेमि जिपवर व्याहण चढिया, तोरण ताम पराइया । हकारि सारथि वेगि पूछा, जीव कांइ पुकारिया। ए भगति होइसी तुम्ह तणी राय उनसेरणी अगाया। रथु मोडि पाछै चलें जिणबरु, जाइ पढ़ गिरनारिया ॥३॥ सो जाइ चढ गिरनारे जहि तजीये राजमती नारे । सब प्रथिक जाणि संसारी, मुरिण घरै महाव्रत भारो। बत भारु से छमस्तु रहिये लोयंती यह पसंसीय । वरदत्त धरि पारणं किये, प्रथम गणहरु आइयें । वाणीय सरस विसा कोमल, भवि जनह नमसीये । बन्दी हु शुभदियो नेमि जिरायर, सब्वजीव अभो दियो ।।। छायाल गुरसह संजुतो, वाइसमु जिरणवर पतो। दश पठ घोश थे चत्तो, पुणु अठ गुणह संयुत्तौ । तिह लोक बंदित चरण जिरणबर, संख लछरण सोभिया । गिरणारि गिरि निर्वाण थाणक प्रटमी पुहवीं गयो । नरनारि जे गुण कहहि स्वामी, सफल जन्मह् त्या तना । कवि देल्ह तन धनपाल प्रणमि ते भेटियो मैय नेमि जिरणा ।।५।।