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________________ ६० वह विधि जाती ।। श्रव सो बन मारग पग धरें। ग्रीषम रिति सिकता पर जरं ॥ १०॥ सर सोमवदन विकास । मल निवारती देषिय पास || श्रीषम महल महा परभात हो तो मलिन सीत के घास || ११|| हम पटलनि करि छायो सोइ । पंडुर वरन कहै सब कोई || दह विधि कष्ट सहे वर नारि । नाना विधि को कहै विचारि ।।१२।। संन्यासहि तिन तज्यो सरीर । निज परजाइ छेदियो बीर ।। अच्युत स्वर्ग देव भयो तेह | अपछर कोटि भई ता गेह ।।१३।। श्रीपाल चरित्र बाईस सागर प्राउ प्रधान । विलसं सुष को कहे बांन ॥ महरूय चं हे शिव यांन। है है सो परमेस प्रवान || १४ || कुंद प्रभा रानी सुभ चित्त । वंही विधि तप व पवित्त ॥ तर छांची केवल पद जोड़ में ही सुरंग भयो सुर सोइ ||१५|| रैनमजूसां तप अति कर्यो । पहूती सुरग महा सुभ धरयो ॥ करयौ महातप और ज नारि । सुभ गति सब को भई बिचारि ।। १६ ।। वह सिरि सिद्धच फल सार । सोभव दुःष विनासन हार ॥ सब हो जीवनि को हैं सनं । जनम जरा नासन सुभ कने ||१७॥ भो मगधेस सुनौं परि भाउ सी विधि श्ररिक तर पार मनमै को वृत धरि साउ | मन च क्रम बंधी जिन नाहु हथ गय रथ अरु दासी दास । अतुल लटि बहु भोग विलास || कर राज सो इन्द्र समान । कीरति महि मंडल परवनि ॥ २०॥ जहाँ श्री सिद्धचक्र व्रत धाउ ।। गनहर पे सुनियों सुभसार || १८ | नाना बिधि मन उपज्यौ चाज ॥ पहुंती नगरी बध्यो उधाडु ||१६|| बोहा ज्यों सुप संसार को, श्रीपाल इन्द्र समान 11 सिद्ध चक्र व्रत पारि करि श्रम सिद्ध चक्र व्रत का महात्म्य मुकति मिलांन ॥ २१ ॥ चौपई श्रथ नर नारी उत्तम लोइ । सिद्ध चक्र प्राराधे जोड़ || मन को भरम वेद छिट काह । पूर्ज जंगहि पिर मन लाई ||२२।।
SR No.090071
Book TitleBai Ajitmati aur Uske Samkalin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1984
Total Pages328
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size5 MB
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