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आत्मानुशासनम्
श्लो० २२०
मामसे प्रसिद्ध हाथीको मार डाला और तब द्रोणाचार्यसे कह दिया कि हे ब्रह्मन्! अश्वत्थामा मर गया है,अब तुम युद्धसे विमुख हो जाओ। परंतु उन्होंने मेरे कहनेपर विश्वास नहीं किया । अब आप कृष्णके वचनोंको मानकर विजय की इच्छासे द्रोणाचार्यसे अश्वत्थामाके मर जाने बाबत कह दें । हे राजन् ! आपके वैसा कह देनेसे द्रोगाचार्य कभी भी युद्ध नहीं करेंगे। कारण कि आप तीनों लोकोंमें सत्यवक्ताके रूपमें प्रसिद्ध हैं । इस प्रकार भीमसेनके कथनको सुनकर और कृष्णको प्रेरणा पाकर युधिष्ठिर वैसा कहने को उद्यत हो गये। तब उन्होंने 'अश्वत्थामा हतः' इस वाक्यांशको जोरसे कहकर पोछे अस्पष्ट स्वरसे यह भी कह दिया कि 'उत कुञ्जरो हत:-अश्वत्थामा मरा है अयवा हाथो मरा है। जब तक युधिष्ठिरने उक्त वाक्यका उच्चारण नहीं किया था तब तक उनका रथ पथिवीसे चार अंगुल ऊंचा था। परंतु जैसे ही उन्होंने उसका उच्चारण किया कि वैसे ही उनके उस रथके घोडे पृथिवीका स्पर्श करने लगे। उधर युधिष्ठिरके मुखसे उस वाक्यको सुनकर द्रोणाचार्य पुत्रके मरणसे संतप्त होते हुए जीवनकी ओरसे निराश हो गये। उस समय वे ऋषियोंके कथनानुसार अपनेको महात्मा पाण्डवोंका अपराधी समझने लगे। इस प्रकार वे पुत्रमरणके समाचारसे उद्विग्न एवं विमनस्क होकर धृष्टद्युम्नको देखते हुए भी उससे युद्ध करनेके लिये समर्थ नहीं हुए।
यह कथानक संक्षेपमें कुछ थोडे-से परिवर्तनके साथ श्री शुभचन्द्रविरचित पाण्डवपुराण (पर्व २०, श्लोक २१८-२३३) तथा देवप्रभसूरिविरचित पाण्डवचरित्र (१३, ४९८-५१४). में भी पाया जाता है ।
कृष्णके कपटपूर्ण बटुवेषका उपाख्यान वामनपुराण (अ.३१) में इस प्रकार पाया जाता है-विरोचनका पुत्र एक बलि नामका दैत्य था,जो अतिशय प्रतापी था। उसके अशना नामकी पत्नीसे सौ पुत्र उत्पन्न हुए थे। एक समय वह यज्ञ कर रहा था। उस समय अकस्मात् पर्वतोंके साथ समस्त