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प्रस्तावना
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टीकाकार प्रभाचन्द्रका परिचय जेसा कि श्रद्धेय पं. जुगलकिशोरजी मुख्तारने सटीक रत्नकरण्डश्रावकाचारकी प्रस्तावनामें (पृ. ५७-६६) लिखा है, प्रभाचन्द्र नामके अनेक आचार्य हो गये हैं। उनमें से यह आत्मानुशासनकी टीका किस प्रभाचन्द्रके द्वारा लिखी गई है, यह विचारणीय है। मेरी समझसे जिनके द्वारा रत्नकरण्डश्रावकाचारको टोका लिखी गई है उन्हीं प्रभाचन्द्रके द्वारा आत्मानुशासनको भी यह टीका लिखी गई है। समाधिशतक के ऊपर भी जो संस्कृत टीका प्रमाचन्द्रकी पायी जाती है वह भी इन्हीं प्रभाचन्द्र के द्वारा लिखी गई है। कारण यह कि इन तीनों ही टीकाओंकी रचनापद्धति समान है, उनमें सर्वत्र खण्डान्वयपूर्वक ही श्लोकोंकी व्याख्या की गई है । इसके अतिरिक्त उन सभी में प्रायः मूल पदोंके ही स्पष्टीकरणका प्रयत्न किया गया है, उससे अधिक कुछ नहीं लिखा गया है। साथ ही उनके मंगलात्मक प्रयम पद्य, प्रस्तावनावाक्य और अन्तिम पद्य तो बहुत अधिक समानता रखते हैं। यथा-- सिद्धं जिनेन्द्रममलप्रतिमप्रबोधं निर्वाणमार्यममलं विबुधेन्द्रवन्धम् । संसारसागरस उत्तरणप्रपोतं वक्ष्ये समाधिशतकं प्रणिपत्य वीरम् ।
समाधिशतक समन्तभद्रं निखिलात्मबोधनं जिनं प्रणम्याखिलकर्मशोधनम् । निबन्धनं स्नकरण्डके परं करोमि भव्यप्रतिबोधनाकरम् ।।
रत्नकरण्ड वीरं प्रणम्य भववारिनिधिप्रपोतमुयोतिताखिलपदार्थमनल्पपुण्यम् । निर्वाणमार्गमनवद्यगुणप्रबन्धमात्मानुशासनपदं प्रवरं प्रवक्ष्ये ।।
आत्मानुशासन इन तीनों ही मंगलपद्योंमें समान रूपसे इष्ट देव (वीर जिनेन्द्र, जिन और वीर जिनेन्द्र) को नमस्कार करके विवक्षित ग्रन्थ (समाधिशतक, रत्नकरण्डक और आत्मानुशासन) की व्याख्या करनेकी प्रतिज्ञा की मई