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आत्मानुशासनम् - [इलो० १३३ब!गृहं विषयिणां मदनायुधस्य नाडीव्रणं विषमनिर्वृतिपर्वतस्य । प्रच्छन्नपादुकमनङगमहाहिरन्ध्रमाहुर्बुधाः जघनरन्ध्रमदः सुदत्याः॥१३३॥
प्रधुरः दण्डोलकरूपः पन्थाः । अनङमूढाः अनङगेन कामेन मूढा विवेकपराङ्मुखाः । खिन्ना अर्थ: प्राणैः खिन्ना: ॥ १३२॥ व!गृहमित्यादि विषमा येन तेन असाध्या, सा चासो निर्वृत्तिश्च पर्वतश्च मोक्षपर्वतस्य (श्च) । प्रच्छन्नपादुकं तिरोहितपातगर्तरूपं रन्ध्रम् । अद: एतत् । सुदत्या: स्त्रिया: शोभना दन्ता यस्याः असो सुदती तम्याः सुदत्याः स्त्रियाः ।। १३३ ।।
भटकानेवाले मार्गसे संयुक्त हैं; ऐसी उस स्त्रीको योनिको पाकर कौन-से कामान्ध प्राणी यहां खेदको नहीं प्राप्त हुए हैं ? अर्थात् वे सभी दुखको प्राप्त हुए हैं ॥ विशेषार्थ-जिस स्थानका मार्ग ऊंचे पर्वतोंसे दुर्गम हो, जिसके मध्यमें नदियां पडती हों, तथा जो भयानक वनसे व्याप्त हो,ऐसे मार्गमें उस स्थानको जानेवाले प्राणी जैसे अतिशय खेदको प्राप्त होते हैं वैसे ही पर्वत जैसे उन्नत स्तनोंसे सहित, त्रिवलीप नदियोंसे वेष्टित और रोमपंक्तिरूप वनराजिसे व्या-त उस योनिस्थानको प्राप्त करनेवाले कामीजन भी इस लोकमें खेदको (आकुलताको) प्राप्त होते हैं तथा इस प्रकारसे पापका संचय करके वे परलोकमें भी दुखो होते है ।।१३२॥ सुन्दर दांतोंवाली स्त्रोका यह जो जांघोंके बोचमें स्थित छिद्र है उसे पण्डित जन कामी पुरुषोंके मल (वीर्य) का घर, कामदेवके शस्त्रका नाडीव्रण अर्थात् नसके ऊपर (उत्पन्न हुआ)घाव, दुर्गम मोक्षरूप पर्वतका ढका हुआ गड्ढा तथा कामरूप महासर्पका छिद्र (बांवी)बतलाते हैं । विशेषार्थ-कामी जन स्त्रीके जिस योनिस्थानमें क्रीडा करते हुए आनन्दका अनुभव करते हैं वह कितना घृणास्पद और अनर्थका कारण है, इसका यहां विचार करते हुए यह बतलाया है कि वह योनिस्थान पुरीषालय (संडास) के समान है-जैसे मनुष्य पुरीषालयमें मल-मूत्रका क्षेपण करते हैं वैसे ही कामी जन इसमें घृणित वीर्यका क्षेपण करते है। फिर भी आश्चर्य है कि जो विषयी जन पुरीषालयमें जाते हुए तो