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मात्मानुशासनम्
[श्लो० १२९
वचनसलिलहासस्वच्छस्तरङ्गसुखोदरः वदनकमलर्बाह्ये रम्याः स्त्रियः सरसीसमाः।
वचनान्येव सलिलानि तैः। हासस्वच्छैः निर्मलैः। तरङ्गसुखोदरः तरङ्गवदुत्पन्नभमुररूपाणि सुखानि तान्युदरे मध्ये येषां वचनस लिलानाम्, तेषां वा जनकानि उदराणि मध्यप्रदेशास्तैः । वदनकमलैः वदनान्येव कमलानि तैः । प्रास्तप्रज्ञाः प्रकर्षण अस्ता क्षिप्ता प्रज्ञा यैः। तटेऽपि सांनिध्यमाने (a )ऽपि ।
है । लौकिक स्त्री जहां केवल धन-सम्पत्ति आदिमें ही अनुराग रखती है वहां मुक्ति-सुन्दरी केवल उत्तमोत्तम गुणोंमें ही अनुराग रखती है। लौकिक स्त्रीसे यदि ऐहिक क्षणिक सुख प्राप्त होता है तो मुक्ति-रमणीसे पारलौकिक अविनश्वर सुख प्राप्त होता है। इस प्रकारसे इन दोनोंका स्वभाव सर्वथा भिन्न है । अतएव जो लौकिक स्त्रीको चाहता है उसे मुक्ति-वल्लभा दुर्लभ है तथा जो मुक्ति-वल्लभाको चाहता है उसे लौकिक स्त्रीसे मोह छोडना पडता है, कारण कि इसके विना वह प्राप्त हो ही नहीं सकती है। इसीलिये तो यह नीति प्रसिद्ध है कि स्त्रियां प्रायः करके अत्यन्त ईायुक्त होती हैं। ऐसी स्थितिमें जो भव्य मुक्ति-रमाको चाहता है उसे लौकिक स्त्रीकी चाह तो दूर रही, किन्तु उसे उसका नाम भी नहीं लेना चाहिये, इसके अतिरिक्त लौकिक स्त्रीको प्रसन्न करने के लिये जिस प्रकार उसे कटिसूत्र, केयूर एवं हार आदि अलंकारोंसे अलंकृत किया जाता है उसी प्रकार मुक्ति-कान्ताको प्रसन्न करनेके लिये उसे सम्यग्दर्शनादिरूप रत्नमय आभूषणोंसे विभूषित करना चाहिये ॥ १२८ ॥ वे स्त्रियां सरसी (छोटा तालाब) के समान बाहिरसे ही रमणीय दिखती हैं- सरसी जिस प्रकार चंचल तरंगोंसे युक्त स्वच्छ जल एवं कमलोंसे सुशोभित होती है उसी प्रकार वे स्त्रियां भी तरंगोंके समान चंचल (अस्थिर) सुखको उत्पन्न करनेवाले हास्ययुक्त मनोहर वचनोंरूप जलसे तथा मुखरूप कमलोंसे रमणीय होती हैं । जिस प्रकार बहुत-से बुद्धिहीन (मूर्ख) प्राणी प्याससे दौडित होकर सरोवरपर जाते हैं और किनारेपर ही भयानक हिंस्र जलजन्तुओंके ग्रास बनकर- उनके द्वारा मरणको प्राप्त होकर-फिर नहीं निकल