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आत्मानुशासनम् ....
[ श्लो० ९१
अश्रोत्रीव तिरस्कृतापरतिरस्कारश्रुतीनां श्रुतिः चक्षुर्वीक्षितुमक्षमं तव दशां दूष्यामिवान्ध्यं गतम् । भीत्येवाभिमुखान्तकादतितरां कायोऽप्ययं कम्पते निष्कम्पस्त्वमहो प्रदीप्तमवनेऽप्यासे (स्से) जराजर्जरे ॥११॥
वृद्धावस्थायामिन्द्रियादीनामेवंविधा प्रवृत्ति पश्यतस्तक निश्चिन्तमवस्थानमयुक्तमित्याह-अश्रोनीवेत्यादि । श्रुति: श्रोत्रम् । तिरस्कृता ते नष्टा:(नष्टा) कथंभूतेव । भश्रोत्रीव श्रोतुमनिच्छतीव कासाम् । परतिरस्कारश्रुतीनां परनिन्दावचनानाम् । तव दशां तव वृद्धावस्थान् । दूष्यां निन्द्याम् । दीक्षितुं द्रष्टुम् । अक्षममिव अशक्तमिव । चक्षुः आन्ध्यं गतम् । भीत्येव भयेनेव । नि:कम्पः परलोकव्यापारचिन्तारहितः । त्वम् । अहो आश्चर्यम् । प्रदोप्त भवनेऽपि प्रदीप्तं भवनमिव प्रदीप्तभवन जराव्याध्याद्युपहृतं शरीरम् । तत्रापि आसे (स्से) तिष्ठसि ॥ ९१ ।। तत्र तिष्ठतो जीवस्य शिक्षा प्रयच्छन्नतिपरिचितेष्वित्याद्याह
शरीर भी तेरा सन्मुख आनेवाले यम (मृत्यु) से मानो भयभीत हो करके ही अतिशय कांप रहा है। फिर भी आश्चर्य है कि तू जलते हुए घरके समान उस वृद्धत्वसे शिथिल हुए शरीरमें निश्चल रह रहा है ।। विशेषार्थवृद्धावस्थामें कान बहरे हो जाते हैं,आंखें अन्धी हो जाती हैं,और शरीर कांपने लगता है । यह शरीरकी अवस्था बुढापेमें स्वभावतः हो जाया करती है । इसपर यहां यह उत्प्रेक्षा की गई है कि बुढापेमें प्रायः घर व बाहिरके सब ही जन तिरस्कार करने लगते हैं, उन निन्दावाक्योंको न सुननेकी ही इच्छासे मानो वृद्धके कान बहरे हो जाते हैं। इसी प्रकार उस अवस्थामें मुंहसे लार बहने लगती है,कपडोंमें मल-मूत्रादि हो जाता है, तथा निरन्तर खांसी व कफ आदि बना रहता है । इस प्रकारको घृणाजनक अवस्थाको न देख सकनेके ही कारण मानो वृद्धकी आंखें अन्धी हो जाती हैं । वह बुढापा क्या है मरणको निकटताको सूचना ही है, उसीके भयसे मानो वृद्धका शरीर कांपने लगता है । वह वृद्धावस्थाका शरीर आगसे जलते हुए महलके समान नष्ट हो जानेवाला है। फिर भी आश्चर्य 1 ज निश्चिन्त्या।