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आत्मानुशासनम्
[श्लो० १०
ष्ठानाऽसर्वज्ञानुष्ठानसमवेतपुरुषलक्षणानि । अष्टौ शङकादयः शङका काङक्षा विचिकित्सा मूढदृष्टिरनुपगूहनमस्थितीकरणमवात्सल्यमप्रभावना इति । संवेगादिविधितं संवेगः संसारभीरुता. धर्मे धर्मफलदर्शने च हर्षों वा । आदिशब्दाद्वैराग्यनिन्दागर्हादयो गृहयन्ते । ते विशेषण वधिता वृद्धि नीता येन तैर्वा विवर्धितं निर्मलरूपतया प्रकर्षनीतम् । भवहरं संसारविनाशकम् ।
ग्रन्थकार स्वयं ही आगे करेंगे, अतएव उनके सम्बन्धमें यहां कुछ नहीं कहा जा रहा है। जिन दोषोंके कारण यह सम्यग्दर्शन मलिनताको प्राप्त होता है वे पच्चीस दोष निम्न प्रकार हैं- ३ मूढता, ८ मद, ६ अनायतन और ८ शंका आदि । मूढताका अर्थ अज्ञानता है। वह मूढता तीन प्रकारकी है । (१) लोकमूढता- कल्याणकारी समझकर गंगा आदि नदियों अथवा समुद्रमें स्नान करना, वालु या पत्थरोंका स्तूप बनाना, पर्वतसे गिरना, तथा अग्निमें जलकर सती होना आदि । (२) देवमूढता- अभीष्ट फल प्राप्त करनेकी इच्छासे इसी भवमें आशायुक्त होकर राग-द्वेषसे दूषित देवताओंकी आराधना करना। (३) गुरुमूढता- जो परिग्रह, आरम्भ एवं हिंसासे सहित तथा संसारपरिभ्रमणके कारणीभूत विवाहादि कार्योमें रत हैं ऐसे मिथ्यादृष्टि साधुओंकी प्रशंसा आदि करना। कहीं कहीं इस गुरुमूढताके स्थानमें समयमूढता पायी जाती है जिसका अभिप्राय है समीचीन और मिथ्या शास्त्रोंकी परीक्षा न कर कुमार्गमें प्रवृत्त करनेवाले शास्त्रोंका अभ्यास करना। ज्ञान, प्रतिष्ठा, कुल (पितृवंश), जाति (मातृवंश), शारीरिक बल, धन-सम्पत्ति, अनशनादिस्वरूप तप और शरीरसौन्दर्य इन आठके विषयमें अभिमान प्रगट करनेसे आठ मद होते हैं । अनायतनका अर्थ है धर्मका अस्थान। वे अनायतन छह हैं- कुगुरु, कुदेव, कुधर्म कुगुरुभक्त, कुदेवभक्त और कुधर्मभक्त । निर्मल सम्यग्दृष्टि जीव राजा आदिके भयसे, आशासे, स्नेहसे तथा लोभसे भी कभी इनकी प्रशंसा आदि नहीं करता है । ८ शंका आदि- (१) शंका- सर्वज्ञ देवके द्वारा उपदिष्ट तत्त्वके विषयमें ऐसी आशंका रखना कि जिस प्रकार