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विषय-सूची
पापशान्तिकें विना अभ्यन्तर शान्ति असंभव है कामी पुरुष क्या क्या निन्द्य कार्य करता है विषयभोगोंकी अस्थिरता
स्त्रियोंके वशीभूत होनेपर जो कष्ट होता है वह स्मरणीय है। संसारी प्राणीकी स्थिति
तृष्णायुक्त प्राणीकी तृष्णा तो शान्त नहीं होती, केवल वह संक्लेशको ही प्राप्त होता है
गृह, बन्धु, स्त्री, पुत्र और धन ये सब विपत्तिके कारण हैं लक्ष्मीकी अस्थिरता
शरीर जन्म-मरणसे सम्बद्ध है
जीव इन्द्रियोंका दास न बनकर जब उन्हें ही दास बना लेता
है तभी सुखी होता है
इच्छानुसार विषयों की प्राप्ति में तृष्णा उत्तरोत्तर बढती हीं है मोहकृत निद्रा के वशीभूत होकर प्राणी यमके भयानक बाजों के शब्दको भी नहीं सुनता है
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उक्त मोहनिद्राके वश प्राणी संसारमें रहता हुआ क्या क्या सहता है ५८ शरीर बन्दीगृह के समान है
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धनी व निर्धन कोई भी सुखी नहीं है
सुखी तपस्वी ही हैं
तपस्विप्रशंसा
शरीरसंरक्षण असम्भव है
इन नश्वर आयु एवं शरीरादिकोंके द्वारा अविनश्वर पद प्राप्त किया जा सकता है
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दुर्बुद्धि प्राणी नश्वर आयु व शरीरके आश्रित रहकर भी भ्रान्तिवश अपनेको अविनश्वर मानता है
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दुःखरूप उच्छ्वास ही जीवन, और उसका विनाश ही मरण है ७३ जीव जन्म व मरणके मध्यमें कितने काल रह सकता है ब्रह्मदेव के द्वारा मनुष्योंके रक्षणका पूरा प्रबन्ध कर देनेपर भी उनकी रक्षा सम्भव नहीं
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