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विषय-सूची विषय
श्लोक मंगलपूर्वक आत्मानुशासनके कथनकी प्रतिज्ञा दुखसे भयभीत प्रागियोंके लिये दुःखापहारी शिक्षा देनेकी सूचना २ यदि इस शिक्षामें तत्काल कटुता भी प्रतीत हो तो भी
उससे भयभीत न होनेकी प्रेरणा संसारसे उद्धार करानेवाले उपदेशकोंकी दुर्लभता बक्ताका स्वरूप श्रोताका स्वरूप पाप-पुण्यका फल सुखके मूल कारणभूत आप्तके आश्रयणकी आवश्यकता सम्यग्दर्शनका स्वरूप व उसके भेदादि सम्यग्दर्शनके १० भेद और उनका स्वरूप सम्यग्दर्शनके विना शमादिकोंकी निरर्थकता हिताहितप्राप्ति-परिहारसे अनभिज्ञ शिष्यके लिये बालकके __ समान सुकुमार क्रिया करनेकी सूचना उक्त सुकुमार क्रियाका स्पष्टीकरण . सुख व दुख दोनों ही अवस्थाओंमें धर्मकी आवश्यकता इन्द्रियसुखके लिये भी धर्मका संरक्षण आवश्यक धर्म सुखका विघातक है, इस शंकाका निराकरण किसानके समान धर्मरूपी बीजका संरक्षण करते हुए ही - भोगोंका अनुभव करना चाहिये कल्पवृक्ष आदिकी अपेक्षा धर्मकी उत्कृष्टता पुण्य-पापके कारण निज परिणाम ही हैं धर्मका विघात करके विषयसुखका भोगना वृक्षकी जडोंको
उखाडकर उसके फलग्रहणके समान है मानसिक, वाचनिक और कायिक प्रवृत्तिमें वह धर्म कृत,
कारित और अनुमोदनासे सरलतापूर्वक संग्राह्य है धर्मके विना पिता-पुत्र भी एक दूसरेका घात करते देखे जाते हैं २६