________________
१००
आत्मानुशासनम्
यह विभावनालंकारका उदाहरण देखियेअभुक्त्वापि परित्यागात् स्वोच्छिष्टं विश्वमाशितं । येन चित्रं नमस्तस्मै कौमारब्रह्मचारिणे ।। १०९ ।
यहां भोजनरूप कारणके विना भी उच्छिष्टरूप कार्यके दिखला नेसे विभावना अलंकार समझना चाहिये। यहां श्लेषालंकारका भी चमत्कार है । यह श्लेषालंकारका भी उदाहरण देखिये ---
यस्मिन्नस्ति स भूभृतो धृतमहावंशाः प्रदेशः परः
प्रज्ञापारमिता धृतोन्नतिधना मूर्ध्ना धियन्ते श्रियै । भूयांस्तस्य भुजंगदुर्गमतमो मार्गों निराशस्ततो
व्यक्तं वक्तुमयुक्तमार्यमहर्ता सर्वार्थसाक्षात्कृतः ॥ ९६ ॥ यहां श्लेषरूपसे भाण्डागार और धर्म इन दोनोंका स्वरूप दिखलाया गया है।
इस प्रकारसे यह आत्मानुशासनरूप कृति अनेक उत्तमोत्तम अलंकारोंसे अलंकृत होनेसे अतिशय मनोहर है ।
%