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आराधनासमुच्चयम् ८९
सोलह, बीस, तीस, पन्द्रह, दश, दश, दश, दश वस्तु नामक अधिकार हैं। इस प्रकार सर्वज्ञ की आज्ञा से पर्याय, पर्यायसमास से लेकर पूर्व समास तक भेद जानने चाहिए।
अक्षरलिज श्रुतज्ञान के विशेष भेदों का कथन अश्रजननक्षरजं चेति द्विति समासतस्तत्म्यात् ।
द्विविधं चाक्षरसंभवमङ्गानङ्गप्रभेदेन ।।६७ ।। अन्वयार्थ - समासतः - संक्षेप से। तत् - वह श्रुतज्ञान । अक्षरज - अक्षर से उत्पन्न | च - और | अनक्षरज - अनक्षर से उत्पन्न । इति - इस प्रकार । द्विविधं - दो प्रकार का है। अक्षरसंभवं . अक्षर से उत्पन्न ज्ञान । अङ्गानङ्गप्रभेदेन - अंग और अंग-बाह्य के भेद से। द्विविधं - दो प्रकार का है।
अर्थ - संक्षेप से श्रुतज्ञान दो प्रकार का है - अक्षरज और अनक्षरज 1 अक्षर से उत्पन्न ज्ञान अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य के भेद से दो प्रकार का है ।
दो भेदों का कथन आचारादिविकल्पाद् द्वादशभेदात्मकं भवेत्प्रथमम्।
सामायिकादिभेदादितरच्च चतुर्दशविकल्पम्॥६८॥ अन्वयार्थ - प्रथमं - अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञान | आचारादिविकल्पात् - आचारादि के विकल्प से । द्वादशभेदात्मकं - बारह भेद वाला। भवेत् - होता है। च - और। इतरत् - अंगबाह्य । सामायिकादिभेदात् - सामायिक आदि के भेद से। चतुर्दशविकल्पं - चौदह प्रकार का है।
अर्थ - अक्षर से उत्पन्न अंगप्रविष्ट श्रुतज्ञान आचारादिक के भेद से १२ प्रकार का है और अंगबाह्य श्रुतज्ञान सामायिक आदि के भेद से १४ प्रकार का है।
विशेषार्थ - श्रुतज्ञान शब्दलिंगज और अर्थलिंगज के भेद से दो प्रकार का है। उसमें भी जो शब्दलिंगज श्रुतज्ञान है, वह लौकिक और लोकोत्तर के भेद से दो प्रकार का है। सामान्य पुरुष के मुख से निकले हुए वचन समुदाय से जो ज्ञान उत्पन्न होता है,वह लौकिक शब्दलिंगज श्रुतज्ञान है। असत्य बोलने के कारणों से रहित पुरुष के मुख से निकले हुए वचनसमुदाय से जो श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है, वह लोकोत्तर शब्दलिंगज श्रुतज्ञान है तथा धूमादिक पदार्थ रूप लिंग से जो श्रुतज्ञान उत्पन्न होता है, वह अर्थलिंगज श्रुतज्ञान है। इसका दूसरा नाम अनुमान भी है।
अनक्षरात्मक और अक्षरात्मक के भेद से श्रुतज्ञान के दो भेद हैं। वाचक शब्द से वाच्यार्थ का ग्रहण अक्षरात्मक श्रुत है और शीतादि स्पर्श में इष्टानिष्ट का होना अनक्षरात्मक श्रुत है।
आचारांग आदि बारह अंग, उत्पाद पूर्व आदि चौदह पूर्व और चकार से सामायिकादि १४ प्रकीर्णक स्वरूप द्रव्यश्रुत है और इनके सुनने से उत्पन्न हुआ ज्ञान भावश्रुत है। पुद्गलद्रव्यस्वरूप अक्षर पदादिक रूप से द्रव्यश्रुत है और उनके सुनने से श्रुतज्ञान की पर्याय रूप जो उत्पन्न हुआ, वह भावश्रुत है।