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________________ आराधनासमुच्चयम्-८८ हैं। यह संघात नामक श्रुतज्ञान चार गतियों में से एक गति के स्वरूप का निरूपण करने वाले अपुनर्युक्त मध्यम पदों के समूह से उत्पन्न अर्थज्ञान रूप है। चार गतियों में से एक गति का निरूपण करने वाले संघात श्रुतज्ञान के ऊपर पूर्व की तरह क्रम से एक-एक अक्षर की तथा पदों और संघातों की वृद्धि होते - होते जब संख्यात हजार संघात की वृद्धि हो जाय तब एक प्रतिपत्ति नामक श्रुतज्ञान होता है। संघात और प्रतिपत्ति श्रुतज्ञान के मध्य में ज्ञान के जितने विकल्प हैं, उतने ही संघातसमास के भेद हैं। यह ज्ञान नरकादि चार गतियों का विस्तृत स्वरूप जानने वाला चारों गतियों के स्वरूप का निरूपण करने वाले प्रतिपत्ति ज्ञान के ऊपर क्रम से पूर्व की तरह एक - एक अक्षर की वृद्धि होते-होते जब संख्यात हजार प्रतिपत्ति वृद्धि हो जाय, तब एक अनुयोग श्रुतज्ञान होता है। इसके पहले और प्रतिपत्तिज्ञान के ऊपर सम्पूर्ण प्रतिपत्तिसमास ज्ञान के भेद हैं। अन्तिम प्रतिपत्तिसमास ज्ञान के भेद में एक अक्षर की वृद्धि होने से अनुयोग श्रुतज्ञान होता है। इस ज्ञान के द्वारा चौदह मार्गणाओं का विस्तृत स्वरूप जाना जाता है। चौदह मार्गणाओं का निरूपण करने वाले अनयोग ज्ञान के ऊपर पूर्वोक्त क्रम के अनुसार एक - एक अक्षर की वृद्धि होते-होते जब चतुरादि अनुयोगों की वृद्धि हो जाय तब प्राभृतप्राभृत ज्ञान होता है। इसके पहले और अनुयोग ज्ञान के ऊपर जितने ज्ञान के विकल्प हैं वे सब अनुयोगसमास के भेद हैं। प्राभृत और अधिकार, ये दोनों शब्द एक ही अर्थ के वाचक हैं। अतएव प्राभूत के अधिकार को प्राभृत-प्राभूत कहते हैं। प्राभृत-प्राभृत ज्ञान के ऊपर पूर्वोक्त क्रम से एक - एक अक्षर की वृद्धि होते - होते जब चौबीस प्राभृत-प्राभृत की वृद्धि हो जाय तब एक प्राभृत श्रुतज्ञान होता है। प्राभृत के पहले और प्राभृत प्राभृत के ऊपर जितने ज्ञान के विकल्प हैं, वे सब ही प्राभृत-प्राभृतसमास के भेद हैं। उत्कृष्ट प्राभृत-प्राभृतसमास के भेद में एक अक्षर की वृद्धि होने से प्राभृत ज्ञान होता है । पूर्वोक्त क्रमानुसार प्राभृत ज्ञान के ऊपर एक-एक अक्षर की वृद्धि होते-होते जब क्रम से बीस प्राभृत की वृद्धि हो जाय तब एक वस्तु अधिकार पूर्ण होता है। वस्तु ज्ञान के पहले और प्राभृत ज्ञान के ऊपर जितने विकल्प हैं, वे सब प्राभृतसमासज्ञान के भेद हैं। उत्कृष्ट प्राभृतसमास में एक अक्षर की वृद्धि होने से वस्तु नामक श्रुतज्ञान पूर्ण होता है। एक-एक वस्तु अधिकार में बीस-बीस प्राभृत होते हैं और एक-एक प्राभृत में चौबीस-चौबीस प्राभृत-प्राभूत होते हैं। अक्षरसमास के प्रथम भेद से लेकर उत्कृष्ट भेद पर्यन्त एक-एक अक्षर की वृद्धि होती पूर्वज्ञान के चौदह भेद हैं जिनमें से प्रत्येक में क्रम से दश, चौदह, आठ, अठारह, बारह, बारह,
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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