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________________ आराधनासमुनम९८२ होता है। अर्थात् बहु में प्रकार भेद इष्ट नहीं है, बहुविध में प्रकार भेद इष्ट है। जैसे कोई शास्त्रज्ञ शास्त्रों का सामान्य रूप से व्याख्यान करता है, बहुत प्रकार के विशेष अर्थों के द्वारा नहीं करता और दूसरा शास्त्रज्ञ उसी शास्त्र का बहुत प्रकार के अर्थों के द्वारा अनेक दृष्टान्तों के साथ विशेष व्याख्यान करता है। जैसे तत, वितत आदि शब्दों के ग्रहण में विशेषता न होते हुए भी जो उनमें प्रत्येक तत' आदि शब्दों के ग्रहण में एक, दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात और अनन्त गुण रूप से परिणत शब्दों का ग्रहण है, वह बहुविध ग्रहण है और जो सामान्य रूप से ग्रहण है, वह बहुग्रहण है। क्षिप्र शब्द का अर्थ अर्थ को शीघ्र ग्रहण करना है। अत: शीघ्रतापूर्वक वस्तु को ग्रहण करना क्षिप्र अवग्रह है और धीरे-धीरे ग्रहण करना अक्षिप्र अवग्रह है। उत्कृष्ट श्रोत्रेन्द्रियावरण के क्षयोपशमादि परिणाम के कारण शीघ्रता से शब्दों को सुनता है, वह क्षिप्र अवग्रह है और क्षयोपशमादि की न्यूनता में देरी से वा धीरे-धीरे शब्द को ग्रहण करता है, वह अक्षिप्र अवग्रह है। इसी प्रकार स्पर्श, रसना आदि इन्द्रियों के प्रति भी लगाना चाहिए। निसृत का अर्थ निकला हुआ या प्रगट पदार्थ है, अनिसृत का अर्थ अप्रगट पदार्थ है। ज्ञानावरण कर्म का उत्कृष्ट क्षयोपशम होने पर वस्तु का एकदेश अवलम्बन लेकर सम्पूर्ण वस्तु का ज्ञान कर लेना अनिसृत अवग्रह है। जैसे सरोवर में जलमग्न हाथी की सूंड देखकर पूरे हाथी का ज्ञान होना अथवा किसी स्त्री का मुख देखकर चन्द्रमा का या (इसका मुख चन्द्रमा के समान है) ऐसी उपमा का ज्ञान होना, अथवा गवय को देखकर गाय का ज्ञान होना, ये सब अनिसृत अवग्रह के उदाहरण हैं। ज्ञानावरण कर्म के क्षयोपशम की न्यूनता होने पर पूरे रूप से निसृत पदार्थ का ज्ञान होना वा पूरे रूप से उच्चारित शब्द का ज्ञान होना निसृत अवग्रह है! अथवा अभिमुख अर्थ को ग्रहण करना निसृत अवग्रह है और अनभिमुख अर्थ को ग्रहण करना अनिसृत है। मुख के द्वारा नहीं कहने पर भी अभिप्राय मात्र से वा संकेत मात्र से वस्तु को जान लेना, अनुक्त अवग्रह है और मुख के द्वारा कथन करने पर जानना उक्त अवग्रह है। श्रोत्रेन्द्रियावरण का उत्कृष्ट क्षयोपशम होने पर शब्द का उच्चारण किये बिना अभिप्राय मात्र से अनुक्त शब्द को जान लेता है कि आप यह कहने वाले हैं अथवा वीणा आदि के तारों को सम्हालते समय ही यह जान लेना कि "इसके द्वारा यह राग बजाया जायेगा" अनुक्त ज्ञान है। उक्त अर्थात् कहने पर शब्द को जानना उक्त है। इसी प्रकार अन्य इन्द्रियों में भी लगा लेना चाहिए। अथवा नियमित गुणविशिष्ट अर्थ को ग्रहण करना उक्त अवग्रह है। जैसे चक्षु इन्द्रिय के द्वारा धवल अर्थ को ग्रहण करना, घ्राण इन्द्रिय के द्वारा गंध द्रव्य का ग्रहण करना, इत्यादि। अनियमित गुणविशिष्ट द्रव्य को ग्रहण करना अनुक्त अवग्रह है। जैसे चक्षु इन्द्रिय के द्वारा रूप देखकर गुड़, आम आदि के रस को ग्रहण करना अथवा घ्राण इन्द्रिय के द्वारा दही के गंधग्रहण काल में उसके खट्टे-मीठे आदि रस को ग्रहण करना।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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