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________________ आराधनासमुच्चयम् ८१ दर्शन के बाद यह स्पर्श है, गंध है, रस है, शब्द रूप है इत्यादि ज्ञान होता है, वह अवग्रह कहलाता अवग्रह के अनन्तर यह गंध किसकी है ? यह कृष्ण वस्तु क्या है ? इत्यादि रूप से संशय उत्पन्न होता है, उसका निवारण करने के लिए, वस्तु का निर्णय करने की नो विशेष आकांक्षा उत्पन्न होती है, वह ईहा ज्ञान है। ईहा के बाद जो वस्तु का निर्णय होता है कि यह शुक्ल पताका है, बगुला नहीं है, यह अवाय ज्ञान है। अवाय के द्वारा निर्णीत वस्तु को कालान्तर में नहीं भूलना धारणा ज्ञान है। अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा ये चारों ज्ञान एकादि के भेद से १२ प्रकार के होते हैं। एक वस्तु को ग्रहण करना वा एक व्यक्ति रूप पदार्थ को ग्रहण करना एक कहलाता है। एक प्रकार के पदार्थ को ग्रहण करना एकविध है अथवा एक व्यक्ति को ग्रहण करना एक है और एक जाति को ग्रहण करना एकविध है। जैसे अल्प श्रोत्रेन्द्रियावरण कर्म के क्षयोपशम से 'तत' 'वितत' आदि में से किसी एक शब्द को सुनकर ग्रहण करता है, वह एकविध अवग्रह है। 'बह' शब्द संख्यावाची और वैपुल्यवाची दोनों प्रकार का है। इन दोनों को यहाँ ग्रहण किया गया है क्योंकि संख्यावाची बहुवचन में और वैपुल्यवाची बहुवचन में कोई विशेषता नहीं है। संख्यावाची 'बहु' शब्द जैसे एक, दो, तीन आदि । वैपुल्यवाची 'बहु' शब्द जैसे बहुत से गेहूँ, बहुत से चावल आदि। 'विध शब्द प्रकारवाची है। जैसे बहुत प्रकार के घोड़े, हाथी या गेहूँ, चावल आदि। संख्या में सौ, दो सौ, चार सौ या संख्यात, असंख्यात आदि अनेक प्रकार से संख्या का ग्रहण होता है। __ श्रोत्रेन्द्रियावरण का प्रकृष्ट क्षयोपशम होने पर युगपत् (एक साथ) तत, वितत, घन, सुषिर आदि बहुत शब्दों को सुनता है, वह बहु का ज्ञान है और तत, वितत आदि शब्दों के एक, दो, तीन, चार, संख्यात, असंख्यात, अनन्त प्रकारों को ग्रहण कर बहुविध शब्दों को जानता है, वह श्रोत्रेन्द्रिय सम्बन्धी, बहु, बहुविध अवग्रह ज्ञान का लक्षण है। इसी प्रकार रसना आदि इन्द्रियों में लगाना चाहिए। जैसे किसी ने दूर से आने वाली गाने की आवाज सुनी। यह गाने की आवाज है, यह कर्णज अवग्रह मतिज्ञान है, दूसरे यह कौनसे गाने की आवाज है, या कौन गा रहा है, किसकी आवाज है, इस प्रकार जानने की अभिलाषा ईहा मतिज्ञान है। तदनन्तर निर्णय कर लेना कि यह गाना है, इस प्रकार का है, इस आदमी की आवाज है, यह अवाय है तथा अवाय के द्वारा निर्णीत ज्ञान को कालान्तर में नहीं भूलना धारणा ज्ञान है। इसी प्रकार अन्य इन्द्रियों और मन में भी लगाना चाहिए। प्रश्न - बहु और बहुविध में क्या अन्तर है ? उत्तर - इनमें एक प्रकार और अनेक प्रकार की अपेक्षा अन्तर है। एकविध में एक जाति की वस्तु का ग्रहण होता है। 'बहु' में बहुत सी जातियों का ग्रहण है। बहुविध में बहुत प्रकार की जातियों का ग्रहण
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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