SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आराधनासमुच्चयम् ५९ इसका काल अन्तर्मुहूर्त है। सम्यक्त्व से गिरते समय अथवा मिथ्यात्व से ऊपर चढ़ते समय अन्तर्मुहूर्त के लिए इस अवस्था का वेदन होना संभव है। इस सम्यग पिगात्व गुणस्थान को भायोपशामिकतम्यग्दृष्टि, औपशमिकसम्यग्दृष्टि और सादिमिथ्यादृष्टि ही प्राप्त होते हैं। परन्तु जो अनादि मिथ्यादृष्टि है अथवा जिस-जिस सादि मिथ्यादृष्टि ने सम्यक्त्व मिथ्यात्व प्रकृति की उद्वेलना कर दी है, वह मिश्रगुणस्थान को प्राप्त नहीं कर सकता। जिनागम में १७ प्रकार के मरण कहे हैं १. आषीचिमरण - प्रतिक्षण आयु आदि प्राणों का क्षय होता है। आयु के निषेक स्वफल देकर निरंतर नष्ट हो रहे हैं, उसको आवीचि या नित्य मरण कहते हैं। २. तद्भवमरण - पूर्व में बँधी हुई आयु, इन्द्रियाँ, मन, वचन, काय इन सर्व प्राणों का नाश हो जाना अर्थात् नूतन शरीर रूप पर्याय को धारण करने के लिए वर्तमान आयु का पूर्णरूप से नष्ट हो जाना तद्भव मरण है। ३. अवधिमरण - जो प्राणी जिस प्रकार का मरण वर्तमान काल में प्राप्त करता है उसके दो भेद हैं, सर्वावधि व देशावधि। प्रदेशों सहित जो आयु वर्तमान समय में जैसी उदय में आती है, वैसी आयु फिर प्रकृत्यादि विशिष्ट बँधकर उदय में आवे वह सर्वावधिमरण कहलाता है, वही आयु आंशिक रूप से सदृश होकर बँधे व उदय में आवे उसे देशावधिमरण कहते हैं। ४. आद्यन्तमरण - यदि वर्तमानकाल के मरण या प्रकृत्यादि के सदृश उदय पुनः आगामी काल में नहीं आवेगा तो उसे आद्यन्तमरण कहते हैं। ५, अवसन्नसाधुमरण - मोक्षमार्ग में स्थित मुनियों का संघ जिसने छोड़ दिया, ऐसे पार्श्वस्थ, स्वच्छन्द, कुशील व संसक्तसाधु अवसन्न कहलाते हैं, उनका मरण अवसन्नमरण है। ६. सशल्यमरण - सशल्यमरण के दो भेद हैं। द्रव्यशल्य व भावशल्य। माया व मिथ्या आदि भावों को भावशल्य और उनके कारणभूत कर्मों को द्रव्यशल्य कहते हैं। भावशल्य की जिनमें संभावना नहीं है, ऐसे पाँचों स्थावरों व असंज्ञी बसों के मरण को द्रव्यशल्यमरण कहते हैं। भावशल्यमरण संयत, संयतासंयत व अविरत सम्यग्दृष्टि के होता है। ७. पलायमरण या बलाका मरण - विनय वैयावृत्य आदि कार्यों में आदर न रखने वाले तथा सर्व कृतिकर्म, व्रत, समिति आदि धर्मध्यान व नमस्कारादि से दूर भागने वाले मुनि के मरण को पलायमरण कहते हैं। सम्यक्त्व पण्डित, ज्ञान पण्डित व चारित्र पंडित ऐसे लोग इस मरण से मरते हैं। ८. बशार्तमरण - आर्त, रौद्र भावों युक्त मरना वशार्त्तमरण है। यह चार प्रकार का होता है - १. इन्द्रियवशात, २. वेदनावशात, ३. कषायवशार्त और ४. नोकषायवशात ।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy