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आराधनासमुच्चयम्
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कासलीवाल कहते हैं कि “यदि उन्हें ११ वीं शताब्दी के आसपास का ही माना जावे तो वह उचित ही रहेगा।" डॉ. उपाध्ये इन्हें ११वीं शताब्दी का स्वीकार करते हैं। रचयिता रवीन्द्र मुनीन्द्र के कालनिर्णय हेतु अभी विशेषशोध अपेक्षित है।
विस्तृत हिन्दी टीका सहित इस ग्रन्थ का यह नवीन प्रकाशन पूज्य आर्यिका श्री सुपार्श्वमती माताजी के वैदुष्य एवं परिश्रम का सुपरिणाम है। आपकी कार्य-तत्परता की जितनी सराहना की जाए वह कम है। आयु के ७५ वसन्त पार कर लेने पर भी आपमें कार्य-निष्पादन की अद्भुत क्षमता है। आपकी लेखनी सतत गतिशील रहती है। कुछ समय पूर्व ही आपने 'सर्वार्थसिद्धि' ग्रन्थ का हिन्दी भाषान्तर पूर्ण किया है जो अभी सम्पादन प्रकाशन की प्रक्रिया में है।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रारम्भ में पूज्य माताजी ने विस्तार से रचयिता रविचन्द्र मुनीन्द्र के सम्बन्ध में प्रकाश डाला है। ब्र. डॉ. प्रमिला बहिन ने पूज्य माताजी का परिचय प्रस्तुत किया है, साथ ही ग्रन्थ के प्रतिपाद्य की भी चर्चा की है। ग्रन्थ के अन्त में मूल श्लाक सूची व उद्धृत पद्यों की सूची सम्मिलित की गई है।
प्रस्तुत संस्करण के संयोजन-सम्पादन का भार मुझ अल्पज्ञ पर डालकर बहुश्रुतज्ञ पूज्य आर्यिकाश्री ने मुझ पर जो अनुग्रह किया है एतदर्थ मैं आपका कृतज्ञ हूँ। मैं पूज्य माताजी के श्रीचरणों में सविनय वन्दामि निवेदन करता हूँ और कामना करता हूँ कि वे निरामय दीर्घायु प्राप्त कर इसी तरह जिनवाणी के हार्द को सहज बोधगम्य बनाकर प्रस्तुत करती रहें।
संघस्था डॉ. प्रमिला बहिन के प्रति भी उनके अनेकविध सहयोग के लिए आभार व्यक्त करता हूँ। ग्रन्थ के प्रकाशन में अर्थसहयोग करने वाले श्री बगड़ा परिवार को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ।
कम्प्यूटर कार्य के लिए निधि कम्प्यूटर्स के श्री क्षेमंकर पाटनी व उनके सहयोगियों विशेषरूप से श्री सुनील भटनागर को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ। त्वरित मुद्रण के लिए हिन्दुस्तान प्रिंटिंग हाउस, जोधपुर को साधुवाद देता हूँ।
___ मेरे प्रमाद व अज्ञान से ग्रंथ की प्रस्तुति में भूलें रह जाना स्वाभाविक है। सहृदय पाठकों से सविनय अनुरोध करता हूँ कि वे क्षमा प्रदान करते हुए सौहार्द भाव से मुझे उन भूलों से अवगत कराने की अनुकम्पा करें।
श्रुत पंचमी २४ मई, २००४
विनीत डॉ. चेतनप्रकाश पाटनी अविरल, ५४-५५, इन्द्रा विहार न्यू पावर हाउस रोड, जोधपुर