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आराधनासमुच्चयम् . ३२४
उसके हाथ में वज्र का चिह्न होने से उसका नाम वज्रकुमार रखा गया। बालक द्वितीया के चन्द्रमा के समान बढ़ता हुआ यौवन अवस्था को प्राप्त कर शस्त्र-शास्त्र विद्या का पारगामी हो गया तथा गरुड़वेग विद्याधर की पुत्री पवनवेगा के साथ इसका विवाह हो गया। आनन्द से समय व्यतीत हो रहा था।
वज्रकुमार को सभी दिवाकर विद्याधर का पुत्र समझते थे। वज्रकुमार ने अपने पराक्रम से अनेक राजाओं को वश में करके विशाल राज्य स्थापित किया।
वज्रकुमार के आने के बहुत दिनों के बाद दिवाकर की पत्नी जयश्री के भी पुत्र उत्पन्न हुआ था। जब वज्रकुमार का यश सर्वत्र फैलने लगा तो जयश्री भीतर-ही-भीतर कुढ़ने लगी, विचार करने लगी कि इसके जीवित रहते मेरे पुत्र को राज्य नहीं मिल सकता।
एक दिन जयश्री एकांत में उदास बैठी हुई थी। आँखों में अश्रुधारा बह रही थी। ज्यों ही उसकी दासी की दृष्टि उसके मुखपर पड़ी तो वह बोल उठी - "स्वामिनी ! ऐसे पराक्रमी पुत्र की माता को दुःख किस बात का?" दासी की बात सुनकर जयश्री ने कहा - "यही तुम लोगों का भ्रम है कि वज्रकुमार मेरा पुत्र है। वह तो मुझे जंगल में पड़ा मिला था। दया कर इसको मैंने पाला। आज वह राज्य का मालिक बन बैठा है। मेरे पुत्र को राज्य कैसे प्राप्त होगा ? इस आशंका से मेरा मन दुःखित हो उठा है।"
वज्रकुमार के कानों में भी यह भनकार पड़ गई, उसे संसार से घृणा हो गई। उसने दिवाकर विद्याधर से सारे समाचार जानकर सोमदत्त मुनिराज के चरणों में दिगम्बर मुद्रा धारण कर घोर तपश्चरण करना प्रारंभ कर दिया।
__ मथुरानगरी के राजा पूतगन्ध की पटरानी उर्मिला प्रत्येक अष्टाह्निका पर्व में जिनेन्द्र भगवान की पूजा करती, दान देती और रथयात्रा करके धर्म प्रभावना करती थी।
मथुरानगरी के सागरदत्त सेठ के घर में पुत्री का जन्म हुआ, परन्तु पापकर्म के उदय से माता - पिता का मरण हो गया, सम्पदा नष्ट हो गई। वह अबोध बालिका दूसरों की जूठन खाकर पेट भरती और वृक्षों के नीचे विश्रान्ति लेती।
एक दिन अभिनन्दन एवं नन्दन नाम के मुनिराज उधर से निकले। जूठे अन्न का एक-एक कण बीनकर खाती हुई उस बालिका को देखकर अभिनन्दन नामक मुनि ने खेद प्रकट किया। नन्दन मुनिराज ने कहा, "कर्मों की लीला बड़ी विचित्र है। क्षण में राजा को रंक और रंक को राजा बना देते हैं। अभी कोट्याधीश की पुत्री जूठन खाकर उदर पूर्ति कर रही है। यौवन अवस्था में यह राजा की पटरानी बनेगी।" मुनिराज के वचन सुनकर एक बौद्ध साधु उसे अपने आश्रम में ले गया। वह जानता था कि दिगम्बर साधुओं के वचन कभी असत्य नहीं होते।
जब वह बालिका यौवन अवस्था को प्राप्त हुई तो उसके शरीर से सौन्दर्य की सुधा-धारा बहने