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________________ आराधनासमुच्चयम् . ३२५ लगी, जिसे देखकर देवाङ्गनायें भी लज्जित हो जाती। एक दिन पूतगन्ध राजा की दृष्टि उस युवती कन्या पर पड़ी, तो उसका शरीर कामबाण से बिंध गया। उसने बौद्धाश्रम में जाकर उसका परिचय पूछ। सबा उसको कुलीन पुत्री जानकार श्रीचन्दक भि से कन्या की याचना की। श्रीवन्दक बौद्ध गुरु ने कहा, "राजन् ! यदि आप बौद्ध धर्म स्वीकार करते हों तो मैं इस कन्या का विवाह आपके साथ कर सकता हूँ, अन्यथा नहीं।" ___ कामान्ध कौनसा कार्य नहीं करता। राजा ने बौद्धगुरु की बात स्वीकार कर ली और उस कन्या के साथ विवाह कर उसे पटरानी पद दे दिया। अष्टाह्रिका पर्व आया। उर्मिला रानी ने उत्सव करना प्रारंभ किया, तब बौद्ध धर्मी रानी ने (राजा की नयी पटरानी ने) रथ रुकवा दिया। पहले बुद्ध भगवान का रथ निकलेगा, बाद में उर्मिला के भगवान का। __उर्मिला के हृदय पर वज्रपात हो गया। उसने राजा से अनुनय-विनय किया, परन्तु राजा ने उसकी एक भी बात नहीं सुनी। उर्मिला की पुकार जब राजा ने नहीं सुनी तब उसने वीतराग प्रभु के चरणों में प्रतिज्ञा की कि यदि प्रथम मेरा रथ नहीं निकलेगा तो मैं अन्न, पानी ग्रहण नहीं करूंगी। यह प्रतिज्ञा कर वह मुनिराज के दर्शन करने गई और सोमदत्त तथा वजकुमार मुनि को सारा वृत्तान्त सुनाया। वज्रकुमार मुनिराज के दर्शन करने दिवाकर आदि विद्याधर भी आये हुये थे। वजकुमार ने उर्मिला की तथा जिनधर्म पर आई हुई विपत्ति को दूर करने के लिए विद्याधरों को कहा । वज्रकुमार मुनिराज की आज्ञानुसार सर्व विद्याधर लोग मथुरा में आये तथा पूतगन्ध राजा को युद्ध में हराकर जैनधर्म का रथ निकलवाकर धर्म की प्रभावना की। स्थ के निर्विघ्न निकलने से उर्मिला के आनन्द की सीमा नहीं रही। बहुत से भव्यों ने मिथ्यात्व का वमन कर सम्यग्दर्शन को ग्रहण किया तथा राजा और बुद्धदासी भी शुद्ध अन्तःकरण से जैनधर्म के अनुयायी हो गये। जिस प्रकार वज्रकुमार मुनि ने जिनधर्म की प्रभावना की, उसी प्रकार धर्मात्माओं को जिनधर्म की प्रभावना करनी चाहिए। ये (अंग) सम्यग्दर्शनाराधना के उपाय हैं। शानाराधना का उपाय अक्षरहीनाध्ययनाद्यपोहनं ज्ञानभावनाढ्यमपि। कालाद्यध्ययनयुतं ज्ञानस्याराधनोपायः॥२३७॥ अन्वयार्थ - अक्षरहीनाध्ययनाधपोहनं - अक्षरहीन अध्ययन से रहित । ज्ञानभावनाढ्यं -
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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