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________________ आराधनासमुच्चयम् . ३२३ वज्रकुमार सोमदत्त नामक विद्वान् अपने मामा के पास गया और उनसे बोला, "हे मातुल ! तुम मुझे राजा से मिला दो। मैं राजा को देखना चाहता हूँ।" परन्तु मामा ने सोचा यह विद्वान् है। राजा को अपने वश में करके मंत्री बन सकता है, इसको राजा के पास ले जाना उचित नहीं है। सोमदत्त को मामा की यह बात बहुत खटकी। आखिर वह मामा के अभिमान को नष्ट करने के लिए स्वयं राजा के समीप गया और अपने पाण्डित्य और प्रतिभाशालिनी बुद्धि का परिचय कराकर राजमंत्री बन गया। ठीक ही है, सबको अपनी शक्ति ही सुख देने वाली होती है। जब सोमदत्त राजमंत्री बन गया तब मामा ने उसके साथ अपनी पुत्री यज्ञदत्ता का विवाह कर दिया। कुछ दिन के बाद यज्ञदत्ता को गर्भ रहा और उसे आम खाने की प्रबल उत्कण्ठा हुई। आम का समय न होने पर भी सोमदत्त आम्रफल की खोज में वन में पहुंचा। ठीक ही है, साहसी पुरुष असमय में भी अप्राप्य वस्तु के लिए साहस करते हैं। वन में भटकते-भटकते सोमदत्त ने देखा कि एक वृक्ष आनफलों के भार से झुका हुआ है। उनकी सौरभ सारे वन में फैल रही है, आश्चर्यचकित हो सोमदत्त ने जैसे ही वृक्ष की तरफ पुनः दृष्टि डाली तो उसे दृष्टिगोचर हुए उसके नीचे बैठे नग्न दिगम्बर मुनिराज । उसने मुनिराज के चरण-कमलों में नमस्कार कर उनके मुखारविन्द से धर्मोपदेश सुना तथा संसार की असारता को जानकर मुनिराज के चरणों में दिगम्बर मुद्रा धारण कर नाभिगिरि पर तपश्चरण करने लगा। यज्ञदत्ता को पुत्र की उत्पत्ति हुई, परन्तु पति के वियोग ने उसके मन को झकझोर दिया था। निरंतर पति की खोज में तत्पर यज्ञदत्ता ने एक दिन किसी के मुख से सुना कि सोमदत्त मुनि बन कर नाभिगिरि पर ध्यान कर रहा है। नन्हे बच्चे को लेकर वह पर्वत पर गई। मुनि भेष में सोमदत्त को देखकर उसकी क्रोधाग्नि भड़क उठी। __मुनिराज को गाली देकर, दुर्वचन के द्वारा उनका तिरस्कार करती हुई वह पापिनी अपने हृदय के टुकड़े निर्दोष बालक को मुनिराज के चरणों में पटक कर घर चली गई। ठीक ही है, क्रोध के वशीभूत हुआ प्राणी कौनसा अनर्थ नहीं करता है ! बालक मुनिराज के चरणों में पड़ा था। इतने में दिवाकर नामक विद्याधर अपनी पत्नी सहित मुनिराज की वन्दना करने आया। ज्योंही उसकी दृष्टि उस बालक पर पड़ी उसने झट उसको गोदी में लेकर छाती से चिपका लिया और मधुर वाणी से अपनी पत्नी से बोला - "प्रिये ! आज तेरी सूनी गोद पुत्ररत्न से भर गई, ले इस पुत्र का पालन-पोषण कर।" पत्नी पुत्ररत्न को प्राप्त कर बहुत खुश हुई।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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