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आराधनासमुच्चयम् . ३१५
इन्हीं दिनों सेठ को बाहर गाँव जाना था। इसलिए उस बनावटी ब्रह्मचारी श्रावक से चैत्यालय संभालने के बारे में कह कर सेठ चले गये। जब रात होने लगी तो गाँव से थोड़ी दूर जाकर उन्होंने पड़ाव डाला।
रात हो गई तो इधर सूर्य चोर उठा.... उसने नीलम मणि रत्न को जेब में रखा और भागने लगा, परन्तु नीलम मणि का प्रकाश छिपा नहीं, वह अन्धेरे में भी जगमगाता था। इससे चौकीदारों को शंका हुई और वे उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़े।
___ "अरे.... मन्दिर के नीलम मणि की चोरी करके चोर भाग रहा है। पकड़ो-पकड़ो" चारों ओर सिपाहियों ने हल्ला मचाया। इधर सूर्य चोर को भागने का कोई मार्ग नहीं रहा, इसलिए वह तो जहाँ जिनभक्त सेठ का पड़ाव था, वहीं पर घुस गया। चौकीदार चिल्लाते हुए चोर को पकड़ने के लिए पीछे से आये। सेठ सब कुछ समझ गया, "अरे ! ये भाई साहब चोर हैं, त्यागी नहीं।"
"लेकिन त्यागी के रूप में प्रसिद्ध यह मनुष्य चोर है, ऐसा लोगों में प्रसिद्ध हुआ तो धर्म की बहुत निन्दा होगी ऐसा विचार कर बुद्धिमान सेठ ने चौकीदारों को रोक कर कहा, "अरे ! तुम लोग यह क्या कर रहे हो ? यह कोई चोर नहीं है। यह तो धर्मात्मा है। नीलममणि लाने के लिए तो मैंने उसे कहा था तुम गलती से इसे चोर समझ कर हैरान कर रहे हो।"
सेठ की बात सुन कर लोग चुपचाप वापिस चले गये। इस तरह एक मूर्ख मनुष्य की भूल के कारण होने वाली धर्म की बदनामी बच गयी।
इसे ही उपगूहन अंग कहते हैं। जैसे एक मेंढक दूषित होने से सम्पूर्ण समुद्र गन्दा नहीं होता, उसी प्रकार किसी असमर्थ निर्बल मनुष्य के द्वारा छोटी-सी भूल हो जाने पर पवित्र जिनधर्म मलिन नहीं हो जाता। जिस तरह माता इच्छा करती है कि मेरा पुत्र उत्तम गुणवान हो, फिर भी पुत्र में कोई छोटा-बड़ा दोष देख कर वह उसे प्रसिद्ध नहीं करती, परन्तु ऐसा उपाय करती है कि उसके गुण की वृद्धि हो; उसी प्रकार धर्मात्मा भी धर्म में कोई अपवाद हो, ऐसा कार्य नहीं करते परन्तु धर्म की प्रभावना हो वही करते हैं। यदि कभी किसी गुणवान धर्मात्मा में कदाचित् दोष आ जाय तो उसे गौण करके उसके गुणों को मुख्य करते हैं और एकान्त में बुला कर उसे प्रेम से समझाते हैं, जिससे उसका दोष दूर हो और धर्म की शोभा बढ़े।।
__ उसी प्रकार, यहाँ जब सभी लोग चले गये तो बाद में जिनभक्त सेठ ने भी उस सूर्य नामक चोर को एकान्त में बुलाकर उलाहना दिया और कहा “भाई ! ऐसा पाप कार्य तुम्हें शोभा नहीं देता। विचार तो कर कि तू यदि पकड़ा जाता तो तुझे कितना दुख भोगना पड़ता तथा इससे जैनधर्म की भी कितनी बदनामी होती। लोग कहते कि जैन धर्म के त्यागी ब्रह्मचारी भी चोरी करते हैं, इसलिए इस धन्धे को तू छोड़ दे।"
वह बोर भी सेठ के ऐसे उत्तम व्यवहार से लज्जित हुआ। स्वयं के अपराध की माफी मांगते हुए