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________________ आराधनासमुख्ययम् ३१२ आचरण नहीं था। मुनि को नहीं करने योग्य प्रवृत्ति वे करते थे। यह सब अपनी आँखों से देख कर चन्द्रसेन की समझ में आ गया कि ये भव्यसेन मुनि चाहे जितने प्रसिद्ध हो परन्तु सच्चे मुनि नहीं हैं तो फिर गुप्ताचार्य उन्हें क्यों याद करेंगे ? सच में, उन चतुर आचार्यदेव ने योग्य ही किया। ___ इस प्रकार चन्द्रसेन ने मुनि श्रुतसागर और भव्यसेन मुनि की स्वयं आँखों से देख कर परीक्षा की। रेवती रानी को भी आचार्य महाराज ने धर्मवृद्धि का आशीर्वाद कहा है, इसलिए इनकी भी परीक्षा करनी चाहिए, ऐसा उसके मन में विचार आया। अगले दिन मथुरा नगरी के उद्यान में अकस्मात् साक्षात् ब्रह्मा प्रगट हुए । इस सृष्टि के कर्ता साक्षात् आये हैं, वे कह रहे हैं - "मैं इस सृष्टि का कर्ता हूँ और दर्शन देने के लिए आया हूँ।" यह बात नगरजनों में फैल गई। नगरजनों की टोलियाँ उनके दर्शन के लिए उमड़ पड़ी और उन्हें गाँव में लाने की चर्चा हुई। मूढ़ लोगों का तो क्या कहना ? बहु-भाग लोग इन ब्रह्माजी के दर्शन करने आये। प्रसिद्ध भव्यसेन मुनि भी कुतूहलवश उस जगह आये। नहीं आये तो सिर्फ श्रुतसागर मुनि और रेवती रानी । जैसे ही राजा ने साक्षात् ब्रह्मा की बात की, वैसे ही महारानी रेवती ने निःशंकपने से कहा - महाराज! ये कोई ब्रह्मा हो ही नहीं सकते, किसी मायाचारी ने इन्द्रजाल खड़ा किया है, क्योंकि कोई ब्रह्मा या कोई अन्य भी इस सृष्टि का कर्ता है ही नहीं। साक्षात् ब्रह्मा तो अपना ज्ञानस्वरूप आत्मा है अथवा भरतक्षेत्र में भगवान ऋषभदेव ने मोक्षमार्ग की रचना की इसलिए उन्हें आदिब्रह्मा कहते हैं। इनके अतिरिक्त दूसरा कोई ब्रह्मा है ही नहीं जिसे मैं वन्दन करूँ। दूसरे दिन मथुरा नगरी में एक अन्य दरवाजे से नागशय्या पर विराजमान विष्णु भगवान प्रगट हुए, जो अनेक अलंकर पहने हुए थे। उनके चारों हाथों में शस्त्र थे। लोगों में फिर हलचल मच गई। लोग बिना कोई विचार किये पुन: उस तरफ भागे, वे कहने लगे, "अहा ! मथुरा नगरी का भाग्य खुल गया है, कल साक्षात् ब्रह्मा ने दर्शन दिये और आज विष्णु भगवान पधारे हैं।" राजा को ऐसा लगा कि आज रानी अवश्य जायेगी इसलिए उन्होंने स्वयं रानी से बात की, परन्तु रेवती रानी तो वीतरागदेव की शरण में ही समर्पित थी, उसका मन जरा भी नहीं डिगा। श्रीकृष्ण आदि नौ विष्णु (वासुदेव) होते हैं और वे तो चौथे काल में हो चुके। दसवाँ विष्णु या नारायण होता नहीं। इसलिए अवश्य ये सब बनावटी हैं क्योंकि जिनवाणी मिथ्या नहीं होती। इस प्रकार जिनवाणी की दृढ़ श्रद्धापूर्वक अमूढदृष्टि अंग से वह जरा भी विचलित नहीं हुई। तीसरे दिन वहाँ एक नई बात हुई। ब्रह्मा और विष्णु के बाद आज तो पार्वती सहित जटाधारी महादेव शंकर प्रगटे । गाँव के बहुत लोग उनके दर्शन करने चल दिये, कोई भक्ति से गया तो कोई कौतूहल
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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