SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आराधनासमुच्चयम्.२८७ तत्त्वों के विषय में मूढ़ नहीं बनना. गुल, कुदेव और कुशाल जी ज. वमन, काय से प्रशंसा नहीं करना अमूददृष्टि अंग है। किसी कारणवश वा अज्ञान तथा शारीरिक शक्ति के अभाव में धर्म में दूषण लगाने वाले के दोषों का आच्छादन करना उनके दोषों को प्रगट नहीं करना उपगूहन अंग है। सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र से च्युत होने वाले प्राणियों को पुनः सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र में स्थिर करना स्थितीकरण अंग है। साधर्मियों के साथ वात्सल्य भाव रखना और धर्म की प्रभावना करना, उसको दर्शनाचार कहते हैं। ऐसा दर्शनाराधना में कहा है। इन आठ अंगों के पालन करने वालों का कथन आराधक पुरुष के स्वरूप में लिखा है। पाँच प्रकार के ज्ञान की आराधना करना, विशेषकर श्रुतज्ञान की आराधना के लिए आठ प्रकार के अंग सहित ज्ञानाभ्यास करना । अक्षर शुद्ध पढ़ना, अर्थ शुद्ध पढ़ना, अक्षर अर्थ दोनों शुद्ध पढ़ना, काल में पढ़ना, विनयपूर्वक पढ़ना, उपधान से पढ़ना, बहुमान से पढ़ना और गुरु का नाम नहीं छिपाना ये ज्ञान के आठ अंग हैं। इनका विशेष लक्षण, इनके पालन करने वालों के नाम, कथा आदि का वर्णन आराधक पुरुषों का कथन करते समय किया है। इस प्रकार ज्ञान का अभ्यास करना ज्ञानाचार है। चारित्र आराधना में कथित चारित्र का पालन करना चारित्राचार है। तपाराधना में कथित १२ प्रकार के तप का आचरण करना तपाचार है। इन चार प्रकार के आचारों में अपनी शक्ति को न छिपाकर प्रवृत्ति करना वीर्याचार है। उत्तम क्षमा - क्रोध कषाय का अभाव होना। दुष्ट-दुर्जन पुरुषों के दुर्व्यवहार को सहन करने की क्षमता होना, किसी भी प्रकार के प्रतिकूल कारणों के मिलने पर मानसिक क्षोभ उत्पन्न न होना उत्तम क्षमा उत्तम मार्दव - मान कषाय का अभाव होना; ज्ञान, जाति, कुल, पूजा, बल (शारीरिक शक्ति), ऐश्वर्य (धनसम्पदा), शारीरिक सौन्दर्य और तपश्चरण आदि का अभिमान नहीं करना, विनयशील होना उत्तम मार्दव भाव है। उत्तम आर्जव - छल - कपट नहीं करना, सरल परिणाम होना, मन, वचन और काय की छल रहित प्रवृत्ति होना उत्तम आर्जव है। उत्तम शौच - पवित्रता के घातक लोभ कषाय का अभाव होना, सांसारिक पदार्थों में गृद्धि नहीं होना, संतोष होना उत्तम शौचधर्म है।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy