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________________ आराधनासमुच्चयम्. २६३ अन्वयार्थ - धर्म: - धर्म। जगतां - संसारी प्राणियों का | बन्धुः - बन्धु है। धर्मः - धर्म ही। मित्रं - मित्र है। धर्मः - धर्म ही। रसायनं - रसायन है। धर्म: - धर्म ही। स्वजन परिजन समूहः - स्वजन परिजन का समूह है। धर्मः - धर्म ही। निधिनिधानं - निधियों का निधान है। धर्मः - धर्म। कल्पमहीजः - कल्पवृक्ष है। धर्म: - धर्म ही। चिन्तामणिः - चिन्तामणि है। धर्म: - धर्म ही। कामदुहः - इच्छित फल को देने वाली। धेनुः - गाय है। धर्म: - धर्म ही। अचिन्त्य - अचिन्त्य । रत्नं - रत्न है। च - और ! धर्मः - धर्म। रसः - रस है। अर्थ - संसारी प्राणियों का धर्म ही एक सच्चा बन्धु है। धर्म ही मित्र है। धर्म ही रसायन है, धर्म ही स्वजन - परिजन का समूह है अर्थात् धर्म ही परिवार है। धर्म ही सर्व लौकिक पारलौकिक निधियों का खजाना है। इच्छित फल को देने वाला होने से धर्म ही कल्पवृक्ष है। धर्म ही कामधेनु है। धर्म ही अचिंत्य रत्न है और धर्म ही परम रस है।।९० ॥ बोधिदुर्लभ भावना बोधिस्तत्त्वार्थानां श्रद्धानं विशदबोधसंवृद्धम् । दुर्लभमेतद्यत्तत्प्रयत्नमस्मिन् सदा कुर्यात् ॥१९२।। अन्वयार्थ - तत्त्वार्थानां - जीवधि तत्वों का। श्रद्धा .. अहान .२०॥ विशनो संवृद्धं - निर्मल ज्ञान की वृद्धि ही। बोधिः - बोधि है। यत् - जो। एतत् - यह। दुर्लभं - दुर्लभ है। तत् - इसलिए। अस्मिन् - इस बोधि में। सदा - निरंतर । प्रयत्नं - प्रयत्न । कुर्यात् - करना चाहिए। अर्थ - सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की प्राप्ति बोधि कहलाती है और यह बोधि बहुत दुर्लभ है। इसलिए इस रत्नत्रय रूप बोधि को प्राप्त करने का निरंतर प्रयत्न करना चाहिए। पञ्चेन्द्रियता नृत्वं स्वायुः कुलदेशजन्ममारोग्यम् । रूपबलबुद्धिसत्त्वं विनयो बुधसेवनाश्रवणम् ॥१९३॥ युक्तायुक्तविवेको युक्तिग्रहणं च धारयिष्णुत्वम् । चेत्येतान्यतिदुर्लभतमानि बाहुल्यतोऽन्येषाम् ।।१९४।। युग्मम् ।। अन्वयार्थ - पंचेन्द्रियता - पंचेन्द्रिय की प्राप्ति। नृत्वं - मनुष्यत्व । स्वायुः - दीर्घायु । कुलदेशजन्म - उत्तम कुल, उत्तम देश में जन्म। आरोग्यं - नीरोगता। रूपबलबुद्धिसत्त्वं - सौन्दर्य, शारीरिक आदि बल, बुद्धि का अस्तित्व। विनयः - विनय । बुधसेवनाश्रवणं - ज्ञानी जनों की सेवा, उनके वचनों का श्रवण | युक्तायुक्तविवेकः - योग्य अयोग्य का विवेक । युक्तिग्रहणं - युक्तिपूर्वक ग्रहण। च - और। धारयिष्णुत्वं - युक्तिपूर्वक वस्तु को ग्रहण करना। इति - इस प्रकार | तानि - ये सारी वस्तुएँ। अन्येषां - दूसरों को। बाहुल्यतः - बहुलता से। अतिदुर्लभतमानि - दुर्लभ से दुर्लभ हैं। अर्थ - अनादि काल से निगोद में एक श्वास में अठारह बार जन्म - मरण करने वाले इन जीवों
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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