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आराधनासमुच्चयम् । २६२
दर्शन प्रतिमा - पंच परमेष्ठी का परम भक्त सम्यग्दृष्टि तथा अष्ट मूलगुण आदि का धारी श्रावक मार्शनिक कारत.त: है।
व्रत प्रतिमा - पंच अणुव्रतों का निरतिचार पालन करना तथा तीन गुणवत, चार शिक्षाव्रत इन सात व्रतों का अभ्यास रूप से पालन करना व्रत प्रतिमा है।
त्रिकाल सामायिक करना सामायिक प्रतिमा है। अष्टमी और चतुर्दशी के दिन उपवास वा एकासन करना प्रोषध प्रतिमा है। सचित्त आहार का त्याग करना पाँचवीं सचित्त त्याग प्रतिमा है। रात्रिभोजन का तथा दिवामैथुन का त्याग करना रात्रि - भुक्तित्याग नामक छठी प्रतिमा है।
ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना ब्रह्मचर्य नामक सातवीं प्रतिमा है। आरम्भादि सम्पूर्ण व्यापार का त्याग आरम्भत्याग नामक आठवीं प्रतिमा है।
अपने पहनने के वस्त्रों के अलावा सारे परिग्रह का त्याग क...ा परिग्रह त्याग प्रतिमा है। किसी भी सांसारिक कार्य की अनुमति नहीं देना अनुमति त्याग प्रतिमा है।
अपने निमित्त से बने हुए या कहकर बनाये हुए आहारादिक का त्याग करना उद्दिष्टत्याग प्रतिमा है। इस प्रकार व्रतपालन की अपेक्षा श्रावक धर्म ग्यारह प्रकार का है। इनका विस्तार चारित्र आराधना में किया है।
मुनिधर्म के दश भेद स्युः क्षान्तिमार्दवार्जवसत्यत्यागादयो द्वितीयस्य।
भेदा दश विज्ञेया ह्याचाराङ्गोक्तविधिनैव ॥१८९॥ अन्वयार्थ - द्वितीयस्य - अनगार धर्म के । आचारांगोक्तविधिना - आचारांग विधि से कथित क्षान्तिमार्दवार्जवसत्य-त्यागादयः - क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, त्याग आदि। स्युः - धर्म हैं। एव - ही। हि - निश्चय से। दश - दश । भेदा - भेद । विज्ञेया - जानने चाहिए।
अर्थ - अनगार धर्म के उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य ये दश भेद जानने चाहिए। इनका लक्षण आचार्य के गुणों के कथन में किया है।
धर्म का माहात्म्य धर्मो बन्धुर्जगतां धर्मो मित्रं रसायनं धर्मः। स्वजनपरिजनसमूहो धर्मो धर्मो निधिनिधानम् ॥१९०।। धर्मः कल्पमहीजो धर्मश्चिन्तामणिश कामदुहः । धेनुर्धर्मोऽचिन्त्यं रत्नं धर्मो रसो धर्मः ॥१९१।।
। इति धर्मानुप्रेक्षा।