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आराधनासमुच्चयम् - २६१
अर्थ - ध्यानस्वरूप अंतरंग तप के कथन में आचार्यदेव ने बारह भावना के चिंतन का निर्देश दिया है, उसमें धर्मानुप्रेक्षा का वर्णन है कि जो निरंतर जीवों को सांसारिक इन्द्रपद, चक्रवर्ती पद, तीर्थकर पद आदि उत्तम अभ्युदयों को प्राप्त कराता है तथा सारे सांसारिक दुःखों से निकालकर उत्तम सुख में पहुँचाता है जिससे निर्वाण पद की प्राप्ति होती है, वह अहिंसादि लक्षण वाला धर्म है।
भावार्थ - जो संसारी प्राणियों को सांसारिक दुःखों से निकाल कर उत्तम सुख में पहुँचाता है, वह धर्म है अहिंसा | इस 'अहिंसा परमोधर्म' लक्षण में धर्म के जितने लक्षण कहे हैं वे सारे लक्षण गर्भित हो जाते हैं।
रत्नकरण्ड श्रावकाचार में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को धर्म कहा है क्योंकि रत्नत्रय से ही प्राणी इन्द्रादि पद को प्राप्त कर अन्त में निर्वाण पद को प्राप्त करता है, अहिंसा के बिना रत्नत्रय का पालन नहीं होता। सम्यक्चारित्र की घातक कषायें हैं और कषायों का अभाव अहिंसा है, अत: 'चारित्तं खलु धम्मो' यह भी अहिंसा का द्योतक है। मोह, क्षोभ रहित साम्यभाव धर्म है और साम्यभाव अहिंसा रूप है। इस प्रकार 'अहिंसा परमो धर्म' में सारी धर्मक्रियायें गर्भित हैं।
धर्म के भेद-प्रभेद स द्विविधः सागारोऽनगाराख्यानभेदतस्तत्र ।
प्रथमोऽप्येकादशधा दशथा प्रविभज्यते ह्यन्यः॥१८७।। अन्वयार्थ - तत्र - वहाँ। सः - वह धर्म | सागार: - गृहस्थ । अनगाराख्यानभेदत: - अनगार नामक भेद से। द्विविध: - दो प्रकार का है। अपि - और । प्रथमः - गृहस्थ धर्म। एकादशधा - ग्यारह प्रकार और। हि - निश्चय से। अन्यः - अनगार धर्म । दशधा - दश प्रकार का। प्रविभज्यते - कहा जाता है।
अर्थ - गृहस्थ धर्म और मुनि धर्म के भेद से अहिंसादि लक्षण धर्म दो प्रकार का है। इसमें श्रावकधर्म दर्शन प्रतिमा आदि के भेद से ग्यारह प्रकार का है तथा उत्तम क्षमा आदि के भेद से मुनि धर्म दश प्रकार का है।
दृष्टिव्रतसामायिकपूर्वाः प्रथमस्य सम्यगवगम्याः।
भेदा झुपासकाध्ययनोदितरूपेण विद्भिरमी ॥१८८॥ अन्वयार्थ - प्रथमस्य - श्रावक धर्म के। दृष्टिव्रतसामायिकपूर्वाः - दर्शन, व्रत, सामायिक पूर्व। सम्यक् - भली प्रकार। अवगम्याः - जानने चाहिए। हि - और। अमी - ये। भेदाः - भेद । उपासकाध्ययनोदितरूपेण - उपासकाध्ययन कथित रूप से। विद्धिः - जानना चाहिए।
अर्थ - श्रावक धर्म के दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्तत्याग, रात्रिभोजनत्याग वा दिवा मैथुन त्याग, ब्रह्मचर्यव्रत, आरंभ त्याग, परिग्रहत्याग, अनुमति त्याग और उद्दिष्टत्याग रूप प्रतिमा के ग्यारह भेद जानने चाहिए।