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आराधनासमुच्चयम् -२४८
१६ कल्प हैं। ग्रैवेयक, अनुदिश व अनुत्तर ये तीन कल्पातीत पटल हैं। सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लान्तव, महाशुक्र, सहस्त्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत ये बारह कल्प हैं। इनसे ऊपर कल्पातीत विमान हैं जिनमें नव ग्रैवेयक, नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमान है।
(२) सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लाँतव, कापिष्ट, शुक्र, महाशुक्र, शतार, सहस्त्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत नामक ये १६ कल्प हैं। ऐसा कोई आचार्य मानते
मेरु की चूलिका से लेकर ऊपर लोक के अन्त तक ऊपर-ऊपर ६३ पटल या इन्द्रक स्थित हैं। एक-एक इन्द्रक का अन्तराल असंख्यात योजन प्रमाण है। अब इनके नामों को अनुक्रम से कहते
उन सौधर्म व ईशान कल्पों के ३१ विमान प्रस्तार हैं (अर्थात् जो इन्द्रक का नाम है वही पटल का नाम है।) (१) ऋतु, (२) विमल, (३) चन्द्र, (४) वल्गु, (५) वीर, (६) अरुण, (७) नन्दन, (८) नलिन, (२) कंचन, (१०) रुधिर (रोहित) (११) चंचत्, (१२) मरुत्, (१३) ऋद्धीश, (१४) वैर्य, (१५) रुचक, (१६) रुचिर, (१७) अंक, (१८) स्फटिक, (१९) तपनीय, (२०) मेघ, (२१) अभ्र, (२२) हारिद्र, (२३) पद्ममाल, (२४) लोहित, (२५) वज्र, (२६) नन्द्यावर्त, (२७) प्रभंकर, (२८) पृष्ठक, (२९) गज, (३०) मित्र, (३१) प्रभ। (सौधर्म-इशान स्वा के पटल)
(३२) अंजन, (३३) वनमाल, (३४) नाग, (३५) गरुड़, (३६) लांगल, (३७) बलभद्र, (३८) चक्र, ये सात पटल सानत्कुमार माहेन्द्र युगल के पटल हैं।
(३९) अरिष्ट, (४०) सुरसमिति, (४१) ब्रह्म, (४२) ब्रह्मोत्तर, ये चार ब्रह्म ब्रह्मोत्तर युगल में हैं। (४३) ब्रह्म हृदय (४४) लांतव, ये दोनों पटल लान्तव-कापिष्ठ युगल के हैं। शुक्र-महाशुक्र युगल में एक (४५) महाशुक्र नामक पटल है। शतार-सहस्त्रार युगल में एक (४६) सहस्रार नामक पटल है।
(४७) आनत (४८) प्राणत (४९) पुष्पक (५०) शान्तकर (५१) आरण (५२) अच्युत ये छह पटल आनत-प्राणत-आरणाच्युत इन युगलों में हैं।
(५३) सुदर्शन (५४) अमोघ (५५) सुप्रबुद्ध (५६) यशोधर (५७) सुभद्र (५८) सुविशाल (५९) सुमनस (६०) सौमनस (६१) प्रीतिंकर ये नव पटल नवग्रैवेयक में हैं (६२) आदित्य और (६३) सर्वार्थसिद्धि नव अनुदिश और पाँच अनुत्तर के पटल हैं; इस प्रकार स्वर्गों में कुल ६३ पटल हैं।
समस्त श्रेणीबद्ध विमानों की जो संख्या है, उसका आधा भाग तो स्वयंभूरमण समुद्र के ऊपर है और आधा अन्य समस्त द्वीप समुद्रों के ऊपर फैला हुआ है। सौधर्म के प्रथम ऋतु इन्द्रक सम्बन्धी