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आराधनासमुच्चयम् - २४३
मतान्तर की अपेक्षा दोनों तटों से ४२,००० योजन भीतर जाने से ४२,००० योजन विस्तार वाले २४, २४ द्वीप हैं। तिनमें ८ तो चारों दिशाओं व विदिशाओं के दोनों पार्श्व भागों में हैं और १६ आठों अंतर दिशाओं के दोनों पार्श्व भागों में है।
विदिशा वालों का नाम सूर्यद्वीप और अंतर दिशावालों का नाम चंद्रद्वीप है। इनके अतिरिक्त ४८ कुमानुष द्वीप हैं। २४ अभ्यन्तर भाग में और २४ बाह्य भाग में। तहाँ चारों दिशाओं में चार, चारों विदिशाओं में ४, अंतर दिशाओं में ८ तथा हिमवान, शिखरी व दोनों विजया पर्वतों के प्रणिधि भाग में ८ हैं। दिशा, विदिशा व अंतर दिशा तथा पर्वत के पास वाले, ये चारों प्रकार के द्वीप क्रम से जगती से ५००, ५००, ५५० व ६०० योजन अंतराल पर स्थित हैं तथा १००, ५५, ५० व २५ योजन विस्तार युक्त हैं। इन कुमानुष द्वीपों में एक जांघवाला, शशकर्ण, बंदरमुख आदि रूप आकृतियों के धारक मनुष्य बसते हैं। धातकी खंड की दिशाओं में भी इस सागर में इतने ही अर्थात् २४ अंत:प हैं जिनमें रहने वाले कुमानुष भी वैसे ही हैं।
धातकी खण्ड : लवणोद को वेष्टित करके ४,००,००० योजन विस्तृत यह द्वितीय द्वीप है। इसके चारों तरफ भी एक जगती है। इसकी उत्तर व दक्षिण दिशा में उत्तर-दक्षिण लम्बायमान दो इष्वाकार पर्वत हैं, जिनसे यह द्वीप पूर्व व पश्चिम रूप दो भागों में विभक्त हो जाता है। प्रत्येक पर्वत पर ४ कूट हैं। प्रथम कूट पर जिनमंदिर है और शेष पर व्यंतर देव रहते हैं। इस द्वीप में दो रचनाएँ हैं पूर्व धातकी और पश्चिम धातकी । दोनों में पर्वत, क्षेत्र, नदी, कूट आदि सब जम्बूद्वीप के समान हैं। जम्बू व शाल्मली वृक्ष को छोड़कर शेष सबके नाम भी वही हैं। सभी का कथन जम्बूद्वीपवत् है। दक्षिण इष्वाकार के दोनों तरफ दो भरत हैं तथा उत्तर इष्वाकार के दोनों तरफ दो ऐरावत हैं। तहाँ सर्व कुल पर्वत तो दोनों सिरों पर समान विस्तार को धरे पहिये के अरोंवत् स्थित हैं और क्षेत्र उनके मध्यवर्ती छिद्रोंवत् है। जिनके अभ्यंतर भाग का विस्तार कम व बाह्य भाग का विस्तार अधिक है। तहाँ सर्व कथन पूर्व व पश्चिम दोनों धातकी खंडों में जम्बूद्वीपवत् है। विदेह क्षेत्र के बहु मध्य भाग में पृथक्-पृथक् सुमेरु पर्वत हैं। उनका स्वरूप तथा उन पर स्थित जिनभवन आदि का सर्व कथन जम्बूद्वीपवत् है। इन दोनों पर भी जम्बूद्वीप के सुमेरुवत् पांडुक आदि चार वन हैं। विशेषता यह है कि यहाँ भद्रशाल से ५०० योजन ऊपर नंदन, उससे ५५५०० योजन सौमनस वन और उससे २८००० योजन ऊपर पांडुक वन है। पृथिवी तल पर विस्तार ९४०० योजन है। ५०० योजन ऊपर जाकर नंदन वन पर ९३५० योजन रहता है। तहाँ चारों तरफ से युगपत् ५०० योजन सिकुड़कर ८३५० योजन ऊपर तक समान विस्तार से जाता है। तदनन्तर ४५५०० योजन क्रमिक हानि सहित जाता हुआ सौमनस वन पर ३८०० योजन रहता है तहाँ चारों तरफ से युगपत् ५०० योजन सिकुड़कर २८०० योजन रहता है, ऊपर फिर १०,००० योजन समान विस्तार से जाता है, तदनन्तर १८,००० योजन क्रमिक हानि सहित जाता हुआ शीष पर १००० योजन विस्तृत रहता है। जम्बूद्वीप के शाल्मली वृक्षवत् यहाँ दोनों कुरुओं में दो-दो करके कुल चार धातकी (आँवले के) वृक्ष स्थित हैं। प्रत्येक वृक्ष का परिवार जम्बूद्वीपवत् १४०१२० है। चारों वृक्षों का कुल परिवार ५६०४८० है। इन वृक्षों पर इस द्वीप के रक्षक