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आराधनासमुच्चयम् २४२
लवणसागर :
जम्बूद्वीप को घेरकर २,००,००० योजन विस्तृत वलयाकार यह प्रथम सागर स्थित है, जो एक नाव पर दूसरी नाव मुंधी रखने से उत्पन्न हुए आकार वाला है तथा गोल है। इसके मध्यतल भाग में चारों ओर १००८ पाताल या विवर हैं। इनमें ४ उत्कृष्ट ४ मध्यम और १००० जघन्य विस्तार वाले हैं। तटों से १५,००० योजन भीतर प्रवेश करने पर चारों दिशाओं में चार ज्येष्ठ पाताल हैं । ९९,५०० योजन प्रवेश करने पर उनके मध्य विदिशा में चार मध्यम पाताल और उनके मध्य प्रत्येक अंतर दिशा में १२५, १२५ करके १००० जघन्य पाताल मुक्तावली रूप से स्थित हैं । १००,००० योजन गहरे महापाताल नरक सीमन्तक बिल के ऊपर संलग्न हैं। तीनों प्रकार के पातालों की ऊँचाई तीन बराबर भागों में विभक्त है। तहाँ निचले भाग में वायु, उपरि भाग में जल और मध्य भाग में यथायोग रूप से जल व वायु दोनों रहते हैं । मध्य भाग में जल व वायु की हानि वृद्धि होती रहती है। शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन २२२२योजन वायु बढ़ती है और कृष्ण पक्ष में इतनी ही घटती है। यहाँ तक कि इस पूरे भाग में पूर्णिमा के दिन केवल वायु ही तथा अमावस्या को केवल जल ही रहता है। पाताल लोक में जल व वायु की इस वृद्धि का कारण नीचे रहने वाले भवनवासी देवों का उच्छ्वास निःश्वास है । पातालों में होने वाली उपर्युक्त वृद्धि हानि से प्रेरित होकर सागर का जल शुक्ल पक्ष में प्रतिदिन ८०० / ३ धनुष ऊपर उठता है और कृष्ण पक्ष में इतना ही घटता है। यहाँ तक कि पूर्णिमा को ४००० धनुष आकाश में ऊपर उठ जाता है और अमावस्या को पृथिवी तल के समान हो जाता है। लोगायणी के अनुसार सागर ११,००० योजन तो सदा ही पृथिवी तल से ऊपर अवस्थित रहता है। शुक्ल पक्ष में इसके ऊपर प्रतिदिन ७०० योजन बढ़ता है और कृष्णपक्ष में इतना ही घटता है। यहाँ तक कि पूर्णिमा के दिन ५००० योजन बढ़कर १६,००० योजन हो जाता है और अमावस्या को इतना ही घटकर वह पुनः ११,००० योजन रह जाता है। समुद्र के दोनों किनारों पर व शिखर पर आकाश में ७०० योजन जाकर सागर के चारों तरफ कुल १,४२,००० वेलन्धर देवों की नगरियाँ हैं। तहाँ बाह्य व आभ्यन्तर वेदी के ऊपर क्रम से ७२,००० और ४२,००० और मध्य में शिखर पर २८,००० हैं । मतान्तर से इतनी ही नगरियाँ सागर के दोनों किनारों पर पृथिवी तल पर भी स्थित हैं। सग्गायणी के अनुसार सागर की बाह्य व आभ्यन्तर वेदी वाले उपरोक्त नगर दोनों वेदियों से ४२,००० योजन भीतर प्रवेश करके आकाश में अवस्थित हैं और मध्य वाले जल के शिखर पर भी दोनों किनारों से ४२,००० योजन भीतर जाने पर चारों दिशाओं में प्रत्येक ज्येष्ठ पाताल के बाह्य व भीतरी पार्श्व भागों में एक-एक करके कुल आठ पर्वत हैं, जिन पर वेलन्धर देव रहते हैं। इस प्रकार अभ्यन्तर वेदी से ४२,००० भीतर जाने पर उपर्युक्त भीतरी ४ पर्वतों के दोनों पार्श्व भागों में प्रत्येक में दो-दो करके कुल आठ सूर्य द्वीप हैं । सागर के भीतर, रक्तोदा नदी के सम्मुख मागध द्वीप, जगती के अपराजित नामक उत्तर द्वार के सम्मुख वरतनु और रक्ता नदी के सम्मुख प्रभास द्वीप है । इसी प्रकार ये तीनों द्वीप जम्बूद्वीप के दक्षिण भाग में भी गंगा सिन्धु नदी व वैजयन्त नामक दक्षिण द्वार के प्रणिधि भाग में स्थित हैं। आभ्यन्तर वेदी से १२,००० योजन सागर के भीतर जाने पर सागर की वायव्य दिशा में मागध नाम का द्वीप है। इसी प्रकार लवण समुद्र के बाह्य भाग में भी ये द्वीप जानना ।
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