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आराधनासमुच्चयम् : २४४
प्रभास व प्रियदर्शन नामक देव रहते हैं। इस द्वीप में पर्वतों आदि का प्रमाण निम्न प्रकार हैं: मेरु २, इष्वाकार २, कुलगिरि १२, विजयार्ध ६८, नाभिगिरि ८, गजदंत ८, यमक ८, कांचन शैल ४००, दिग्गजेन्द्र पर्वत १६, वक्षार पर्वत ३२, वृषभगिरि ६८, क्षेत्र या विजय ६८, कर्मभूमि ६, भोगभूमि १२, महानदियाँ २८, विदेह क्षेत्र की नदियाँ १२८, विभंगा नदियाँ २४, द्रह ३२, महानदियों व क्षेत्र नदियों के कुंड १५६, विभंगा के कुंड २४, धातकी वृक्ष २, शाल्मली वृक्ष २ हैं ।
कालोद समुद्र :
धातकी खंड को घेरकर ८००,००० योजन विस्तृत वलयाकार कालोद समुद्र स्थित है। जो सर्वत्र १००० योजन गहरा है। इस समुद्र में पाताल नहीं है। इसके अभ्यंतर व बाह्य भाग में लवणोदक्त् दिशा, विदिशा, अंतरदिशा व पर्वतों के प्रणिधि भाग में २४, २४ अंतद्वीप स्थित हैं । वे दिशा विदिशा आदि वाले द्वीप क्रम से तट से ५००, ६५०, ५५० व ६५० योजन के अंतर से स्थित हैं तथा २००, १००, ५०, ५० योजन है । मतान्तर से इनका अंतराल क्रम से ५००, ५५०, ६०० व ६५० है तथा विस्तार लवणोद वालों की अपेक्षा दूना अर्थात् २००, १००० व ५० योजन है।
पुष्कर द्वीप :
कालोद समुद्र को घेरकर १६,००,००० के विस्तार युक्त पुष्कर द्वीप स्थित है। इसके बीचों-बीच स्थित कुंडलाकार मानुषोत्तर पर्वत के कारण इस द्वीप के दो अर्ध भाग हो गए हैं, एक अभ्यन्तर और दूसरा बाह्य अभ्यंतर भाग में मनुष्यों की स्थिति है पर मानुषोत्तर पर्वत को उल्लंघकर बाह्य भाग में जाने की उनकी सामर्थ्य नहीं है । अभ्यंतर पुष्करार्ध में धातकी खंडवत् ही दो इष्वाकार पर्वत हैं जिनके कारण यह पूर्व व पश्चिम के दो भागों में विभक्त हो जाता है। दोनों भागों में धातकी खंडवत् रचना है। धातकी खंड के समान यहाँ ये सब कुलगिरि तो पहिये के अरोंवत् समान विस्तार वाले और क्षेत्र उनके मध्य छिद्रों में हीनाधिक विस्तार वाले हैं। दक्षिण इष्वाकार के दोनों तरफ दो भरत क्षेत्र और इष्वाकार के दोनों तरफ दो ऐरावत क्षेत्र हैं। क्षेत्रों, पर्वतों आदि के नाम जम्बूद्वीप के समान है। दोनों मेरुओं का वर्णन धातकी मेरु के समान है। मानुषोत्तर पर्वत का अभ्यंतर भाग दीवार की भाँति सीधा है और बाह्य भाग में नीचे से ऊपर तक क्रम से घटता गया है। भरतादि क्षेत्रों की १४ नदियों के गुजरने के लिए इसके मूल में १४ गुफाएँ हैं। इस पर्वत के ऊपर २२ कूट हैं। तहाँ पूर्वादि दिशा में तीन-तीन कूट हैं। पूर्वी विदिशाओं में दो-दो और पश्चिमी विदिशाओं में एक-एक कूट है। इन कूटों की अग्रभूमि में अर्थात् मनुष्य लोक की तरफ चारों दिशाओं में ४ सिद्धायतन कूट हैं। सिद्धायतन कूट पर जिनभवन है और शेष पर सपरिवार व्यंतर देव रहते हैं। मतांतर की अपेक्षा नैर्ऋत्य व वायव्य दिशावाले एक-एक कूट नहीं हैं। इस प्रकार कुल २० कूट हैं। इसके ४ कुरुओं के मध्य जम्बू वृक्षवत् सपरिवार ४ पुष्कर वृक्ष हैं। जिन पर सम्पूर्ण कथन जम्बूद्वीप के जम्बू व शाल्मली वृक्षवत् है। पुष्करार्ध द्वीप में पर्वत क्षेत्रादि का प्रमाण बिल्कुल धातकी खंडवत् जानना ।