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________________ आराधनासमुख्ययम् - २३८ होती है। वहाँ पश्चिम दिशा की ओर मुड़ जाती है और क्षेत्र के अर्ध आयाम प्रमाण क्षेत्र के बीचों बीच बहती हुई अन्त में पश्चिम लवणसागर में मिल जाती है। इसकी परिवार नदियों का प्रमाण २८,००० है। (४) महाहिमवान पर्वत के ऊपर महापद्म ह्रद के दक्षिण द्वार से रोहित नदी निकलती है। दक्षिणमुखी होकर १६०५ यो. पर्वत के ऊपर जाता है। वहाँ से पर्वत के नीचे रोहित कुण्ड में गिरती है और दक्षिणमुखी बहती हुई रोहितास्यावत् ही हैमवत क्षेत्र में, नाभिगिरि से २ कोस इधर रहकर पूर्व दिशा की ओर उसकी प्रदक्षिणा देती है। फिर वह पूर्व की ओर मुड़कर क्षेत्र के बीच में बहती हुई अन्त में पूर्व लवणसागर में गिर जाती है। इसकी परिवार नदियाँ २८,००० हैं। (५) महाहिमवान पर्वत के ऊपर महापद्म हद के उत्तर द्वार से हरिकान्ता नदी निकलती है। वह उत्तरमुखी होकर पर्वत पर १६०५. यो. चलकर नीचे हरिकान्ता कुण्ड में गिरती है। वहाँ से उत्तरमुखी बहती हुई हरिक्षेत्र के नाभिगिरि को प्राप्त हो उससे दो कोस इधर ही रहकर उसकी प्रदक्षिणा देती हुई पश्चिम की ओर मुड़ जाती है और क्षेत्र के बीचोंबीच बहती हुई पश्चिम लवणसागर में मिल जाती है। इसकी परिवार नदियाँ ५६,००० हैं। (६) निषध पर्वत के तिगिंछ द्रह के दक्षिण द्वार से निकलकर हरित नदी दक्षिणमुखी ही ७४२१२० योजन पर्वत के ऊपर जा, नीचे हरित कुण्ड में गिरती है। वहाँ से दक्षिणमुखी बहती हुई हरिक्षेत्र के नाभिगिरि को प्राप्त हो उससे दो कोस इधर ही रहकर उसकी प्रदक्षिणा देती हुई पूर्व की ओर मुड़ जाती है और क्षेत्र के बीचोंबीच बहती हुई पूर्व लवणसागर में गिरती है। इसकी परिवार नदियाँ ५६,००० हैं। (७) निषध पर्वत के तिगिंछहद के उत्तर द्वार से सीतोदा नदी निकलती है, जो उत्तरमुखी हो पर्वत के ऊपर ७४२११० योजन जाकर नीचे विदेह क्षेत्र में स्थित सीतोदा कुण्ड में गिरती है। वहाँ से उत्तरमुखी बहती हुई वह सुमेरु पर्वत तक पहुँचकर उससे दो कोस इधर ही पश्चिम की ओर उसकी प्रदक्षिणा देती हुई, विद्युत्प्रभ गजदंत की गुफा में से निकलती है। सुमेरु के अर्द्धभाग के सन्मुख हो वह पश्चिम की ओर मुड़ जाती है और पश्चिम विदेह के बीचोंबीच बहती हुई अन्त में पश्चिम लवणसागर में मिल जाती है। इसकी सर्व परिवार नदियाँ देवकुरु में ८४,००० और पश्चिम विदेह में ४४८०३८ (कुल ५३२०३८) हैं। (८) सीता नदी का सर्व कथन सीतोदावत् जानना । विशेषता यह कि नील पर्वत के केसरी द्रह के दक्षिण द्वार से निकलती है। सीताकुण्ड में गिरती है। माल्यवान गजदन्त की गुफा से निकलती है। पूर्व विदेह में से बहती हुई पूर्व सागर में मिलती है। इसकी परिवार नदियाँ भी सीतोदावत् जानना । (९) नरकान्ता नदी का सम्पूर्ण कथन हरितवत् है। विशेषता यह कि नील पर्वत के केसरी द्रह के उत्तर द्वार से निकलती है, पश्चिमी रम्यकक्षेत्र के बीच में बहती है और पश्चिम सागर में मिलती है। (१०) नारी नदी का सम्पूर्ण कथन हरिकान्तावत् है। विशेषता यह है कि रुक्मि पर्वत के महापुण्डरीक द्रह के दक्षिण द्वार से निकलती है और पूर्व रम्यक क्षेत्र में बहती हुई पूर्व सागर में मिलती है।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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