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________________ आराधनासमुच्चयम् - २३७ कुण्ड : हिमवान पर्वत के मूलभाग से २५ योजन हटकर गंगाकुण्ड स्थित है। उसके बहुमध्यभाग में एक द्वीप है, जिसके मध्य में एक शैल है। शैल पर गंगा देवी का प्राप्ताद है। इसी का नाम गंगाकूट है। उस कूट के ऊपर एक जिन प्रतिमा है, जिसके शीश पर गंगा की धारा गिरती है। उसी प्रकार सिन्धु आदि शेष नदियों के पतन स्थानों पर भी अपने-अपने क्षेत्रों में अपने-अपने पर्वतों के नीचे सिन्धु आदि कुण्ड जानना। इनका सम्पूर्ण कथन उपर्युक्त गंगा कुण्डवत् है विशेषता यह कि उन कुण्डों के तथा तन्निवासिनी देवियों के नाम अपनी-अपनी नदियों के समान हैं। भरत आदि क्षेत्रों में अपने-अपने पर्वतों से उन कुण्डों का अन्तराल भी क्रम से २५,५०,१००,२००,१००,५०,२५ योजन है। ३२ विदेहों में गंगा, सिन्धु व रक्ता-रक्तोदा नाम वाली ६४ नदियों के भी अपने-अपने नाम वाले कुण्ड नील व निषध पर्वत के मूलभाग में स्थित हैं। जिनका सम्पूर्ण वर्णन उपर्युक्त गंगा कुण्डवत् ही है। नदियाँ : (१) हिमवान पर्वत पर पद्मद्रह के पूर्वद्वार से गंगानदी निकलती है। द्रह की पूर्व दिशा में इस नदी के मध्य एक कमलाकार कूट है, जिसमें बला नाम की देवी रहती है। द्रह से ५०० योजन आगे पूर्व दिशा में जाकर पर्वत पर स्थित गंगाकूट से 5 योजन इधर-ही-इधर रहकर दक्षिण की ओर मुड़ जाती है और पर्वत के ऊपर ही उसके अर्ध विस्तार प्रमाग अर्थात् ५२३० योजन आ साकार प्रणाली को प्राप्त होती है। फिर उसके मुख से निकलती हुई पर्वत के ऊपर से अधोमुखी होकर उसकी धारा नीचे गिरती है। वहाँ पर्वत के मूल से २५ योजन हटकर वह धार गंगाकुण्ड में स्थित गंगाकूट के ऊपर गिरती है। इस गंगा कुण्ड के दक्षिण द्वार से निकलकर वह उत्तर भारत में दक्षिणमुखी बहती हुई विजया की तमिस्र गुफा में प्रवेश करती है। उस गुफा के भीतर वह उन्मग्नी व निमग्ना नदी को अपने में समाती हुई गुफा के दक्षिण 'द्वार से निकलकर वह दक्षिण भारत में उसके आधे विस्तार तक अर्थात् ५१९.योजन तक दक्षिण की ओर जाती है। तत्पश्चात् पूर्व की ओर मुड़ जाती है और मागध तीर्थ के स्थान पर लवण सागर में मिल जाती है। इसकी परिवार नदियाँ कुल मिलाकर १४००० हैं। ये सब परिवार नदियाँ म्लेच्छ खण्ड में होती हैं, आर्यखण्ड में नहीं। (२) सिन्धु नदी का सम्पूर्ण कथन गंगा नदीवत् है। विशेष यह कि पद्म द्रह के पश्चिम द्वार से निकलती है। इसके भीतरी कमलाकार कूट में लवणा देवी रहती है। सिन्धुकुण्ड में स्थित सिन्धुकूट पर गिरती है। विजया की खण्डप्रपात गुफा को प्राप्त होती है। पश्चिम की ओर मुड़कर प्रभास तीर्थ के स्थान पर पश्चिम लवणसागर में मिलती है। इसकी परिवार नदियाँ १४००० हैं। (३) हिमवान पर्वत के ऊपर पद्मद्रह के उत्तर द्वार से रोहितास्या नदी निकलती है जो उत्तरमुखी ही रहती हुई पर्वत के ऊपर २७६ ६ योजन चलकर पर्वत के उत्तरी किनारे को प्राप्त होती है, फिर गंगानदीवत् ही धार बनकर रोहितास्या कुण्ड में स्थित रोहितास्या कूट पर गिरती है। कुण्ड के उत्तरी द्वार से निकलकर उत्तरमुखी रहती हुई वह हैमवत् क्षेत्र के मध्यस्थित नाभिगिरि तक जाती है, परन्तु उससे दो कोस इधर ही रहकर पश्चिम की ओर उसकी प्रदक्षिणा देती हुई पश्चिम दिशा में उसके अर्धभाग के सम्मुख
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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