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________________ आराधनासमूच्वयम्२३९ (११) रूप्यकूला नदी का सम्पूर्ण कथन रोहित नदीवत् है। विशेषता यह है कि यह रुक्मि पर्वत के महापुण्डरीक ह्रद के उत्तर द्वार से निकलती है और पश्चिम हैरण्यवत् क्षेत्र में बहती हुई पश्चिम सागर में मिलती है। (१२) सुवर्णकूला नदी का सम्पूर्ण कथन रोहितास्या नदीवत् है। विशेषता यह है कि यह शिखरी के पुण्डरीक ह्रद के दक्षिणद्वार से निकलती है और पूर्वी हैरण्यवत् क्षेत्र में बहती हुई पूर्व सागर में मिल जाती (१३-१४) रक्ता-रक्तोदा का सम्पूर्ण कथन गंगा व सिन्धुवत् है। विशेषता यह कि ये शिखरी पर्वत के महापुण्डरीक हद के पूर्व और पश्चिम द्वार से निकलती हैं। इनके भीतरी कमलाकार कूटों के पर्वत के नीचे वाले कुण्डों व कूटों के नाम रक्ता व रक्तोदा हैं। ऐरावत क्षेत्र के पूर्व व पश्चिम में बहती है। (१५) विदेह के ३२ क्षेत्रों में भी गंगा नदी की भाँति गंगा, सिन्धु व रक्ता-रक्तोदा नाम की क्षेत्र नदियाँ हैं। इनका सम्पूर्ण कथन गंगा नदीवत् जानना। इन नदियों की भी परिवार नदियाँ १४०००, १४,००० (१६) पूर्व व पश्चिम विदेह में से प्रत्येक में सीता व सीतोदा नदी के दोनों तरफ तीन-तीन करके कुल १२ विभंगा नदियाँ हैं। ये सब नदियाँ निषध या नील पर्वतों से निकलकर सीतोदा या सीता नदियों में प्रवेश करती हैं। ये नदियाँ जिन कुण्डों से निकलती हैं वे नील व निषध पर्वत के ऊपर स्थित हैं। प्रत्येक नदी का परिवार २८,००० नदी प्रमाण है। देवकुरु व उत्तरकुरु : (१) जम्बूद्वीप के मध्यवर्ती चौथे नम्बर वाले विदेह क्षेत्र के बहुमध्यप्रदेश में सुमेरु पर्वत स्थित है। उसके दक्षिण व निषध पर्वत की उत्तर दिशा में देवकुरु तथा उसकी उत्तर व नील पर्वत की दक्षिण दिशा में उत्तरकुरु स्थित है। सुमेरु पर्वत की चारों दिशाओं में चार गजदन्त पर्वत हैं जो एक ओर तो निषध व नील कुलाचलों को स्पर्श करते हैं और दूसरी ओर सुमेरु को। अपनी पूर्व व पश्चिम दिशा में ये दो कुरु इनमें से ही दो-दो गजदन्त पर्वतों से घिरे हुए हैं। (२) तहाँ देवकुरु में निषध पर्वत से १००० योजन उत्तर में जाकर सीतोदा नदी के दोनों तटों पर यमक नाम के दो शैल हैं, जिनका मध्य अन्तराल ५०० योजन है। अर्थात् नदी के तटों से नदी के अर्ध विस्तार से हीन २२५ योजन हटकर स्थित है। इसी प्रकार उत्तर कुरु में नील पर्वत के दक्षिण में १००० योजन जाकर सीतानदी के दोनों तटों पर दो यमक हैं। (३) इन यमकों से ५०० योजन उत्तर में जाकर देवकुरु की सीतोदा नदी के मध्य उत्तर दक्षिण लम्बायमान ५ द्रह हैं। मतान्तर से कुलाचल से ५५० योजन दूरी पर पहला द्रह है। ये द्रह नदियों के प्रवेश व निकास द्वारों से संयुक्त हैं। तात्पर्य यह है कि यहाँ नदी की चौड़ाई तो कम है और हदों की चौड़ाई अधिक।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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