SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 219
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आराधनासमुच्चयम् २१० ४. मानवनिधि - अनेक प्रकार के आयुध तथा राजनीति व अन्य शास्त्र प्रदान करती है। ५. शंखनिधि - अनेक प्रकार के वादित्र देती है। ६. पानिधि - अनेक प्रकार के उत्तम-उत्तम वस्त्र अर्पण करती है। ७. नैसर्पनिधि - अति सौन्दर्य से युक्त भवन, शय्या, आसन, भाजन आदि उपभोग्य वस्तुएँ प्रदान करती है। ८. पिंगल निधि - अनेक प्रकार के हार, मुकुट, कुण्डल, कड़ा, बाजूबंद आदि आभूषण अर्पित करती है। ९. नानारत्न निधि - अनेक प्रकार के रत्न प्रदान करती है। ये सभी निधियाँ अविनाशी होती हैं। निधिपाल नामक देवों के द्वारा सुरक्षित रहती हैं और निरंतर लोगों के उपकार में आती हैं। ये नवनिधियाँ नौ योजन चौड़ी, बारह योजन लम्बी, आठ योजन गहरी वक्षार गिरि के समान विशाल कुक्षि से युक्त तथा आठ पहिये वाली गाड़ी की आकृति वाली होती हैं। ये नौ की नौ निधियाँ कामवृष्टि नामक गृहपति (नौवाँ सचेतन रत्न) के आधीन रहती हैं और सदा चक्रवर्ती के समस्त मनोरथों को पूर्ण करती हैं। १४ रत्नों और नवनिधियों में प्रत्येक की एक-एक हजार देव रक्षा-सेवा करते हैं। अर्थात् चौदह रत्नों में प्रत्येक रत्न की और नवनिधियों में एक-एक निधि की एक-एक हजार देव रक्षा करते हैं। दिव्य पुर (नगर), रत्न, निधि, सैन्य, भाजन, भोजन, शय्या, आसन, वाहन और नाट्य ये चक्रवर्ती के दशांग भोग होते हैं। क्षितिसार नामक घर का कोट, सर्वतोभद्र, गौशाला, नन्द्यावर्त छावनी, सर्व ऋतुओं में रहने योग्य वैजयन्त महल, सभाभूमि, गिरिकूटक दिशा प्रेक्षण भवन, वर्धमानक नृत्यशाला, शीतगृह, वर्षाऋतुनिवास, गृहकूटक, पुष्करावती निवास भवन, सिंहवाहिनी शय्या, अनुपमान चमर, सूर्यप्रभ छत्र, विद्युत्प्रभ कुण्डल, विषमोचिका खड़ाऊ, अभेद्य कवच, अजितजय रथ, वज्रकाण्ड धनुष, अमोघ बाण, बज्रतुण्डा शक्ति, सुदर्शन चक्र, अयोध्य सेनापति, बुद्धिसागर पुरोहित, कामवृष्टि गृहपति, भद्रमुख स्थपति, (सिलावट), बारह योजन तक को शब्द से व्याप्त करने वाली आनन्द भेरी, धवल वर्ण का विजयगिरि नामक हाथी, पवनंजय घोड़ा, सुभद्रा नामक पटरानी आदि अनेक प्रकार की सम्पदा चक्रवर्ती के होती है, जो देवों को भी दुर्लभ है। ३२,००० मुकुटबद्ध राजा निरंतर चक्रवर्ती के चरणों की सेवा करते हैं, छ्यानवे हजार रानियाँ, अठारह करोड़ घोड़े, चौरासी लाख हाथी, चौरासी लाख रथ, एक करोड़ हल, तीन करोड़ गायें, बत्तीस हजार गणबद्ध देव, तीन सौ साठ तनुरक्षक देव, तीन सौ साठ रसोइया आदि अनेक भोगोपभोग सामग्री से युक्त चक्रवर्ती की सम्पदा, हाथी के कर्ण के अग्रभाग के समान चंचल है, एक क्षण में नष्ट हो जाती है।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy