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________________ आराधनासमुन्वयम् - २०९ नाम मिटाकर उस स्थान पर अपना नाम लिखता है। गुफा के काँटों आदि का शोधन भी दण्डरल से होता ४. काकिणी - इससे विजयार्ध पर्वत की खण्डप्रपात और तिमिस्रा गुफा का अन्धकार दूर किया जाता है तथा वृषभाचल पर नाम भी लिखा जाता है। ६. मणि - विजयार्ध पर्वत की दोनों गुफाओं को प्रकाशित करती है। ७. चर्म - म्लेच्छ राजा कृत जल के ऊपर तैरकर अपने ऊपर सारे कटक (सेना) को आश्रय देता है अर्थात् म्लेच्छ राजा और देवों के द्वारा अति घोरदृष्टि की जाने पर बारह योजन लम्बा और १२ योजन चौड़ा चर्म रत्न पानी पर बिछाकर और उतने ही बड़े रत्न को ऊपर तानकर चक्रवर्ती सेना की रक्षा करता है। इस प्रकार सात अजीव रत्न हैं। सात सचेतन रत्न १. सेनापति - यह सारी सेना का अधिपति होता है। यह सेनापति ही तिमिस्रा और खण्डप्रपात नामक गुफा का द्वार दण्ड-रत्न के द्वारा खोलता है। २. गृहपति - चक्रवर्ती का खर्च, हिसाब-किताब आदि देखता है। ३. गज (हाथी) चक्रवर्ती के सवारी हेतु काम आता है। यद्यपि चक्रवर्ती के ८४.००,००० हाथी होते हैं तथापि यह मुख्य होता है। ४. अश्व - घोड़ा रत्न है - यद्यपि चक्रवर्ती के अठारह करोड़ घोड़े होते हैं, परन्तु यह घोड़ा सब में मुख्य है। ५. पुरोहित - दैवी उपद्रवों की शांति के लिए अनुष्ठान करता है। ६. स्थपति - यह स्थपतिरत्न नदी पर पुल बनाने, घर आदि बनाने का कार्य करता है। ७. स्त्रीरत्न - ९६ हजार रानियों में मुख्य होता है, चक्रवर्ती का मूल शरीर उसके पास जाता है। इसका नाम सुभद्रा है। नवनिधियों के नाम १. कालनिधि - ऋतु के अनुसार पुष्प-फलादि अर्पण करती है। निमित्त, न्याय, व्याकरण आदि विषय के अनेक प्रकार के शास्त्र तथा बाँसुरी, नगाड़े आदि पंचेन्द्रियों के मनोज्ञ विषय देती है। २. महाकालनिधि - सुवर्ण, चांदी आदि धातुओं से निर्मित अनेक प्रकार के भाजन तथा असि, मसि आदि के साधनभूत द्रव्य प्रदान करती है। ३. पाण्डुनिधि - गेहूँ, चावल, मूंग, उड़द आदि धान्य तथा घृत, तेल, दूध, दही आदि षट्रस देती है।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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