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आराधनासमुच्चयम् १९७
(तलवार) के समान दोनों में भेद नहीं पाया जाता है तथा एकरूप हुए दूध और पानी के समान दोनों अभिन्न रूप में पाये जाते हैं। इस कारण शरीर से शरीरधारी अभिन्न है, वैसे ही कथंचित् मूर्त भी है।
मोहग्रस्त संप्सारी प्राणी जब तक अपने शुद्ध ज्ञान-दर्शन-सुख-स्वरूप अमूर्त स्वभाव को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक बारम्बार कर्मों को भोगता हुआ नया-नया कर्म-बन्ध और नये-नये जन्म धारण करता रहता है। किन्तु वही आत्मा जब किसी भी सन्निमित्त को प्राप्त कर अपने शुद्ध परमात्म-स्वरूप का साक्षात् अनुभव कर लेता है, तो पुनः कर्मबन्ध के चक्र में नहीं पड़ता।
जिस प्रकार खनिज-सुवर्ण का मिट्टी के साथ कब संयोग हुआ, यह नहीं कहा जा सकता; इसी प्रकार आत्मा के साथ पहले-पहले कब कर्मों का बन्ध हुआ, यह भी नहीं कहा जा सकता। इस कारण आत्मा के साथ कर्मबन्ध को अनादि कहा गया है।
जैसे चिकने पदार्थ पर रजकण आदि आकर चिपक जाते हैं, उसी प्रकार रागद्वेष रूपी चिकनाहट के कारण कर्म, आत्मा से बद्ध हो जाते हैं। जब आत्मा में रागादि विभावों का आविर्भाव होता है तब आत्मप्रदेशों के विस्तार में सर्वत्र विद्यमान सूक्ष्म पुद्गल-परमाणु आत्म-प्रदेशों से बद्ध हो जाते हैं। यही बन्ध का स्वरूप है। बन्ध के समय, उन कर्मों में चार बातें मियत होती हैं, जिनके कारण बन्ध के भी चार प्रकार कहे जाते हैं - (१) प्रकृति-बन्ध (२) स्थिति-बन्ध (३) अनुभाग-बन्ध और (४) प्रदेश-बन्ध। .
जैसे गाय घास खाती है और अपने देहाभ्यन्तर स्नायु-तन्त्र के द्वारा उसे दूध के रूप में परिणत कर देती है। उस दूध में चार गुण होते हैं।
(१) दूध में मधुर-रस या माधुर्य-स्वभाव। (२) काल-मर्यादा (दूध के विकृत न होने की एक अवधि)
(३) दूध के माधुर्य गुण में तरतम-भाव, जैसे भैंस के दूध की अपेक्षा गाय के दूध में माधुर्य का कम होना आदि तथा।
(४) दूध का परिमाण, लीटर, दो लीटर आदि।
इसी प्रकार आत्म-प्रदेशों के साथ एकमेक रूप से बद्ध होने वाले परमाणुओं में एक विशेष प्रकार का स्वभाव उत्पन्न हो जाना प्रकृतिबन्ध है। स्वभाव निर्माण के साथ ही आत्मा के साथ उसके बद्ध रहने की अवधि भी निश्चित हो जाती है, उसे स्थिति-बन्ध कहते हैं। फल (रस) देने की तीव्रता अथवा मन्दता अनुभाग-बन्ध होती है और बँधने वाले कर्म परमाणुओं (वर्गणाओं) का विविध कर्म प्रकृतियों में विभाजन प्रदेश-बन्ध कहलाता है।
इसी प्रकार उदय भी प्रकृति उदय, स्थिति उदय, अनुभाग उदय और प्रदेश उदय के भेद से चार प्रकार का है।