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________________ आराधनासमुच्चयम् * १९१ | हिंसानन्द, मृषानन्द, स्तेयानन्द और संरक्षणानंद के भेद से रौद्र ध्यान चार प्रकार का है। समूह को अपने से तथा अन्य के द्वारा मारे जाने पर, पीड़ित किये जाने पर, उनका ध्वंस करने पर, घात करने के सम्बन्ध मिलने पर हर्ष मानना, युद्ध में हार-जीत सम्बन्धी भावना करना, शत्रुओं से बदला लेने की भावना रखना, पर-लोक में बदला लेने की भावना करना तथा जीवों को दुःखी वा आपत्तियों से घिरा हुआ देखकर हर्षित होना हिंसानन्द नामक रौद्र ध्यान है। हिंसा के उपकरण शस्त्रादि का संग्रह करना, हिंसा की कथा करना, हिंसा के साधनभूत आरंभ में प्रीति होना, क्रूर हिंसक जीवों का अनुग्रह करना और निर्दयता का भाव रखना हिंसानन्दरौद्रध्यानी के बाह्य चिह्न हैं । जो मनुष्य असत्य कल्पना के कारण पाप रूपी मैल से मलिनचित्त होकर जो कुछ चेष्टा या चिंतन करता है, अपने असत्य वचनों के द्वारा दूसरों को ठगने के भाव करता है, स्वकीय वाक्चातुर्य से दूसरों को आपत्ति में डालने का प्रयत्न करता है तथा जिस किसी प्रकार के वचनों का प्रयोग करके दूसरों के घरधन आदि को ग्रहण कर आनन्द मानता है, वह सब मृषानंद रौद्र ध्यान है । कठोर, मर्मभेदी, आक्रोश, तिरस्कार आदि से युक्त वचन बोलना, किसी को ताड़ना, तर्जना करना, किसी का तिरस्कार करना, ये मृषानन्दी रौद्र ध्यानी के बाह्य चिह्न हैं । तीव्र कषाय के उदय से, स्वकीय बुद्धि से कल्पित युक्तियों के द्वारा दूसरों को ठगने के लिए असत्य भाषण के संकल्प का बार-बार चिन्तन करना तथा असत्य भाषण से यशलाभ वा विजय प्राप्त होने पर हर्षित होना मृषानन्द रौद्र ध्यान है। जबरन अथवा प्रमाद की प्रतीक्षापूर्वक दूसरों के धन को हरण करने के संकल्प का बार-बार चिन्तन करना, दूसरों के धन की चोरी हो जाने पर हर्षित होना तथा चोरी करके मन में आनन्द मनाना चौर्यानन्द रौद्रध्यान है। दूसरों की धन-सम्पदा को देखकर निरंतर दुःखी होता रहता है, जिस किसी प्रकार से दूसरों के धन को चुराने का प्रयत्न करता है और दूसरों को ठगने के लिए कृत्रिम वस्तुओं का उत्पादन करता है, चोरी वा उगाई के कार्य के सफल हो जाने पर आनन्दित होता है, ये चौर्यानन्द रौद्र ध्यान के बाह्य चिह्न हैं। पंचेन्द्रिय विषयभोग सम्बन्धी वस्तुओं का संग्रह करके उनकी रक्षा करने का निरंतर चिंतन करना, क्रूरचित्त होकर बहुत आरंभ और परिग्रह के रक्षणार्थ उद्यम करना विषय संरक्षणानन्द रौद्र ध्यान है। निरंतर चेतन, अचेतन पदार्थों की रक्षा करने में आकुलित रहना, विषयभोगों की वस्तुओं की हानि होने पर मुख विकृत हो जाना, शरीर काँपने लग जाना, उन वस्तुओं के प्राप्त हो जाने पर आनन्दित होना ये विषयसंरक्षण रौद्र ध्यान के बाह्य चिह्न हैं ।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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