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________________ आराधनासमुच्चयम् * १९० निदान नामक ध्यान को छोड़कर शेष तीन ध्यान संयमी, भावलिंगी प्रमत्तगुणस्थानवर्ती मुनिराज के भी होते हैं। इन सब ध्याताओं के परिणाम भिन्न-भिन्न हैं, अत: इसके असंख्यात लोकप्रमाण भेद हैं। संक्षेप से, आर्त ध्यान बाह्य और अध्यात्म के भेद से दो प्रकार का है। अन्य लोग जिसका अनुमान कर सकें, बाह्य चिह्नों से जिसको जान सकें वह बाह्य आर्त ध्यान है। जैसे आर्तध्यानी के सर्व प्रथम शंका, सर्व बातों में सन्देह (संशय) होता है, फिर शोक, भा, प्रमाद, का में भावना होती है, वह कलह करता है, निरंतर कलह करने के उसके परिणाम रहते हैं, चित्तभ्रम हो जाता है, उद्भ्रान्ति होती है, चित्त एक जगह स्थिर नहीं रहता है। विषयसेवन में उत्कण्ठा होती है। निरंतर निद्रा का आगमन होता है। व्यर्थ में गमनागमन करना, खेदखिन्न होना, मूर्छा आदि आर्त ध्यान के बाह्य चिह्न हैं। इनसे आर्त ध्यानी के अंतरंग की क्रिया का भान अन्य लोगों को होता है। आध्यात्मिक आर्त ध्यान स्वसंवेद्य है। वह चार प्रकार का है। शारीरिक और मानसिक दु:खों के कारणभूत अनिष्ट पदार्थों का संयोग होने पर उनके विनाश की मानसिक चिन्ता करना, इष्ट पदार्थ का वियोग होने पर उनके संयोग का मानसिक संकल्प, शारीरिक रोग से पीड़ित होने पर उसके विनाश का चिन्तन तथा निरंतर भावी काल में होने वाली भोगों की वाँछा में झुलसना ये आध्यात्मिक आत ध्यान हैं। बाह्य में इष्ट और अनिष्ट चेतन पौत्र-पुत्रादि और अचेतन धन-वस्त्र आदि दो प्रकार के होते हैं। उनके निमित्त से आर्त ध्यान भी दो प्रकार का होता है। रौद्रध्यान और उसके भेदों का कथन रुद्रः क्रूरस्तस्मिन्समुद्भवं रौद्रनामकं ध्यानम् । भवति चतुर्विधमेतत् हिंसानन्दादिभेदेन ॥११९॥ हिंसादीनां बाह्ये हेतौ सति तत्प्रसिद्धये स्थिरके। बुद्धिसमन्याहारे रौद्रध्यानानि चत्वारि ॥१२०।। अन्वयार्थ - रुद्रः - रौद्र। क्रूरः - क्रूरता । तस्मिन् - उन क्रूर परिणामों में। समुद्भवं - उत्पन्न । रौद्रनामकं - रौद्रनामक । ध्यानं - ध्यान है। एतत् - वह रौद्र ध्यान । हिंसानन्दादिभेदेन - हिंसानन्दादि के भेद से। चतुर्विधं - चार प्रकार का। भवति - होता है। हिंसादीनां - हिंसा आदि के । बाह्ये - बाह्य । हेती - हेतु के। सति - होने पर । तत्प्रसिद्धये - उस हिंसादि की प्रसिद्धि के लिए। स्थिरके - स्थिर । बुद्धिसमन्वाहारे - चित्त से बार-बार चिन्तन करना। चत्वारि - चार। रौद्रध्यानानि - रौद्रध्यान होते हैं। अर्थ - यह रौद्र ध्यान क्रूर परिणामों से होता है। रुद्र का अर्थ क्रूर आशय है। उस रुद्र आशय का जो भाव है, वह रौद्र कहलाता है। जो पुरुष प्राणियों को रुलाता है, रौद्र क्रूर कार्य करता है तथा प्राणियों पर निर्दयता का भाव रखता है, चोर-जार, शत्रु जनों के वध-बन्धन सम्बन्धी चिंतन करता है उसकी ये सब क्रियाएँ वा भाव रौद्र ध्यान हैं।
SR No.090058
Book TitleAradhanasamucchayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavichandramuni, Suparshvamati Mataji
PublisherDigambar Jain Madhyalok Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Religion
File Size10 MB
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