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आराधनासमुच्चयम् १४७
परिहारर्द्धि समेतः - परिहारविशुद्धि संयम वाला मुनि । षड्जीवनिकायसंकुले - छह काय के जीवों से व्याप्त स्थान पर विचरन् - विहार करता हुआ भी। पापनिवहेन - पापसमूह से। न - नहीं। लिप्यते - लिप्त होता है। इव - जैसे। पद्मपत्रं - कमल का पत्ता। पयसा - पानी के द्वारा लिप्त नहीं होता है॥९०-९१-९२॥
___अर्थ - जिसने गृहस्थावस्था में तीस वर्ष सुखपूर्वक व्यतीत कर दैगम्बरी मुद्रा धारण की है तत्पश्चात् वर्ष पृथक्त्व काल प्रमाण तीर्थकर के चरणमूल में प्रत्याख्यान नामक पूर्व का अध्ययन किया है, उन्हीं के परिहारविशुद्धि संयम होता है। (किसी अन्य आचार्य ने यह अवधि १६ वर्ष या बावीस वर्ष भी कही है।)
एक कोटि पूर्व से अधिक आयु वाले मानवों को तो परिहारविशुद्धि संयम होता नहीं है। षट्रखण्डागम में परिहारविशुद्धि संयम के काल का कथन करते समय कहा है कि अड़तीस वर्ष कम एक कोटि पूर्वकाल है। किसी आचार्य के मतानुसार १६ वर्ष या २२ वर्ष कम एक कोटि पूर्व है। जिनके मत में १६ वर्ष कम एक कोटि पूर्व है, उनके मतानुसार आठ वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहण करनी होगी और बावीस वर्ष कम वाले के १४ वर्ष की अवस्था में दीक्षा ग्रहा" करा होगा ! वा पृथकत्व से यहाँ आठ वर्ष ग्रहण किये हैं अन्यथा अड़तीस वर्ष घटित नहीं होते। परिहारविशुद्धि संयम वाले को तीनों संध्याकाल को छोड़कर दो गव्यूति प्रमाण विहार करना ही पड़ता है। इनको चातुर्मास में एक ग्राम या एक स्थान पर रहने का नियम नहीं है, परन्तु ये रात्रि में गमन नहीं करते हैं।
श्लोक में “दिवसे गव्यूति द्वितयग:" लिखा है, इससे सूचित होता है कि वे दिन में दो गव्यूति प्रमाण गमन करते हैं, रात्रि में नहीं।
परिहरण - प्राणिवध से निवृत्ति को परिहार कहते हैं। इस युक्त शुद्धि (प्राणिवध से निवृत्तियुक्त शुद्धि) जिसके होती है वह परिहारविशुद्धि कहलाती है। अर्थात् परिहारविशुद्धि संयम वाले के शरीर से किसी जीव की विराधना नहीं होती है। जिस प्रकार पानी में रहते हुए भी कमलपत्र पानी से लिप्त नहीं होता उसी प्रकार पृथ्वी आदि छह काय के जीवों पर विहार करते हुए भी वे पाप से लिप्त नहीं होते।
जो मुनिराज संयम के विनाश से अत्यन्त भयभीत हैं, अत्यंत विशुद्ध परिणाम वाले हैं, स्वप्न में भी संयम की विराधना नहीं करते हैं, उनको ही परिहारविशुद्धि संयम प्राप्त होता है।
___ उस परिहारविशुद्धि संयम के परिणाम उत्तम, मध्यम, जघन्य के भेद से तीन प्रकार के हैं। जघन्य परिहारविशुद्धि सामायिक, छेदोपस्थापना संयम के सम्मुख हुए जीव के होता है तथा सामायिक एवं छेदोपस्थापना वाले के उत्कृष्ट परिहार-विशुद्धि संयम होता है क्योंकि सामायिक और छेदोपस्थापना संयम के साथ परिहारविशुद्धि संयम का अविनाभाव सम्बन्ध है। सामायिक, छेदोपस्थापना संयम की विशुद्धि से ही परिहारविशुद्धि संयम उत्पन्न होता है।