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आराधनासमुच्चयम् . १४६
इस प्रकार इन दोनों प्रकार के संयमों में असंख्यात लोक प्रमाण सूक्ष्म परिणामों के साथ समानता है अत: इन दोनों में वास्तविक भेद नहीं है। इसलिए षट्खण्डागम की प्रथम पुस्तक में लिखा है कि सामायिक चारित्र और छेदोपस्थापना चारित्र में विवक्षा भेद से ही भेद है; गुणस्थान, काल, स्वामी की अपेक्षा कोई भेद नहीं है क्योंकि दोनों का प्रादुर्भाव एक साथ छठे गुणस्थान से होता है और नवम गुणस्थान तक दोनों का अस्तित्व रहता है। अत: इन दोनों में उपचार मात्र से भेद है, वास्तव में भेद नहीं होने से दोनों एक हैं। अतः ये दोनों मिलकर एक हैं। सूक्ष्मसांपराय, परिहारविशुद्धि और यथाख्यात रूप चार प्रकार का संयम माना है।
अजितनाथ से लेकर भगवान पार्श्वनाथ पर्यंत बावीस तीर्थंकरों ने सामायिक चारित्र का उपदेश दिया था और आदिनाथ तथा महावीर भगवान ने छेदोपस्थापना चारित्र का उपदेश दिया। क्योंकि आदिनाथ तीर्थंकर के समय के जीव सरल स्वभावी थे इसलिए संक्षेप में कथित सामायिक चारित्र को समझने में असमर्थ थे तथा महावीर भगवान के समय के मानव कुटिल स्वभावी होने से दुःखकर समझ सकते थे अथवा आदिनाथ के काल के शिष्य और महावीर माधान के शिष्य प्रगट रीति से चोग्य-अयोधको नहीं जानते, संक्षेप कथन से नहीं समझते, अत: इन दोनों तीर्थंकरों ने विस्तारपूर्वक छेदोपस्थापना चारित्र का कथन किया। सामायिक चारित्र का कथन संक्षेप में है और छेदोपस्थापना चारित्र का कथन विस्तारपूर्वक है।
परिहार विशुद्धि संयम का लक्षण त्रिंशद्वर्षाद् योगी वर्षपृथक्त्वं च तीर्थकरमूले । प्रत्याख्यानमधीत्य च गव्यूति द्वितयगो दिवसे ॥९० ।। संयमविनाशभीरुर्लभते परिहारसंयमं शुद्धम् । त्रिविधास्तत्परिणामा भवन्त्यसंख्यातसंख्यानाः ॥९१ ।। परिहारार्द्धिसमेतः षड्जीवनिकायसंकुले विचरन् ।
पयसेव पद्मपत्रं न लिप्यते पापनिवहेन ।।९२ ।। अन्वयार्थ - त्रिंशद्वर्षात् - तीस वर्ष के बाद । योगी - योग धारण करके । तीर्थकरमूले - तीर्थंकर के चरणमूल में। च - और । वर्षपृथक्त्वं - वर्ष पृथक् (आठ वर्ष तक)। प्रत्याख्यानं - प्रत्याख्यान नामक पूर्व को। अधीत्य - पढ़कर। दिवसे - दिन में | गन्यूति द्वितयगः - दो गव्यूति। गमन करता है।
संयमविनाशभीरुः - संयम के विनाश से भयभीत मुनि। शुद्धं - शुद्ध। परिहार संयमं - परिहारसंयम को। लभते - प्राप्त करता है। तत्परिणामा - उस परिहार विशुद्धि के परिणाम । त्रिविधाः ' - तीन प्रकार के हैं। असंख्यातसंख्यानाः - असंख्यात संख्यात भेद । भवन्ति - होते हैं।