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आराधनासमुच्चयम् ५१३३
चरणों की अष्ट द्रव्य से पूजा करना। पूजा करके नमस्कार करना । मन शुद्ध, वचन शुद्ध, काय शुद्ध और अन्न-जल शुद्ध बोलना नवधा भक्ति है।
श्रद्धा - पात्र के प्रति विश्वास, तुष्टि - संतोष - पात्र को देखकर प्रसन्न होना। भक्ति - पात्र के गुणों में अनुराग होना | विज्ञान - 'द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव का ज्ञान होना, देय वस्तु का ज्ञान होना । अलुब्धता - दान देकर सांसारिक भोगों की वांछा नहीं करना वा दान देते समय लोभ नहीं करना । क्षमा - क्रोध के कारण मिलने पर भी क्रोध नहीं करना। अपनी शक्ति को नहीं छिपाना ये सात, दाता के गुण होते हैं। इस प्रकार सात गुण और नवधाभक्तिपूर्वक आहार देना, उनकी आपत्ति को दूर करना अतिथिपूजा है। समन्तभद्र आदि आचार्यों ने इसे अतिथिसंविभाग व्रत कहा है। कुन्दकुन्द आचार्य ने इसे अतिथिपूजा कहा है।
चतुर्थ शिक्षाव्रत सल्लेखना - जिसका अर्थ है मरण समय में कषाय और शरीर को कृश कर समभाव से शरीर को छोड़ना।
उपसर्ग, दुर्भिक्ष, बुढ़ापा और निष्प्रतिकार रोगों के उपस्थित हो जाने पर धर्म के लिए शरीर को छोड़ना आचार्यों ने सल्लेखना कहा है।
जब यह निश्चित हो जाय कि अब मरण अवश्य होगा ही, सर्व आरम्भ परिग्रह का त्याग कर गुरु सान्निध्य में अपने दोषों की आलोचना कर क्रमश: अन्न, दूध, छाछ, पानी का त्याग कर णमोकार मंत्र का जाप करते हुए प्राणों का विसर्जन करना सल्लेखना है।
श्रावक के इन व्रतों का पालन करने वालों की अपेक्षा ११ भेद हैं :
दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषधोपवास, सचित्तत्याग, रात्रिभुक्तित्याग, ब्रह्मचर्यव्रत, आरम्भविरति, परिग्रहविरति, अनुमतिविरति और उद्दिष्टविरति ये श्रावक की ११ प्रतिमाएँ कहलाती हैं।
दर्शन प्रतिमा - अष्ट मूलगुण धारण - वटफल, पीपलफल, उदुम्बर - गूलर, कंठजर, कठुम्बर, अंजीर, एकार्थवाची हैं। प्लक्ष, जटी, प्रकटी, अर्थात् बड़, पीपल, गूलर, पाकर और अंजीर इन पाँच फलों के खाने का त्याग करना। क्योंकि इन पाँचों फलों में त्रसजीव रहते हैं। मद्य, मांस और मधु का त्याग करना । ये अष्ट मूलगुण कहलाते हैं।
किन्हीं आचार्यों ने मद्य, मांस, मधु के त्याग के साथ पाँच अणुव्रत धारण करने को अष्ट मूलगुण कहा है।
सात व्यसन त्याग - शराब पीना, मांस खाना, जुआ खेलना, शिकार करना, वेश्यासेवन, परस्त्रीरमण और चोरी करना ये सात व्यसन कहलाते हैं। व्यसन का अर्थ होता है ऐसा कार्य जिनमें पड़कर मानव हेयोपादेय को भूल जाय। दर्शनविशुद्धि के लिए दर्शन प्रतिमाधारी को सात व्यसन का त्याग करना आवश्यक है क्योंकि ये सात महापाप हैं।