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आराधनासार - ४७
एवं चतुर्विधाराधना भव्येनाराधनीयेति तात्पर्यार्थः । बोदाभ्यंतर
तपस्यर्भाष शक्तिं स्वामनुपेक्ष्य यो वितनुते चारित्रपानोद्यमं । भक्त्या स प्रसभं कुकर्मनिचयं भक्त्वा न्र सम्यक् परब्रह्माराधनमद्भुतोदितचिदानंदं पदं विंदते ॥७ ॥
व्यवहाराराधनास्वरूपं प्रतिपाद्य निश्चयाराधनास्वरूपं प्रतिपादयतिसुद्धये चरखधं उत्त आराहणाइ एरिसियं । सव्ववियप्पविमुको सुद्धो अप्पा निरालंबो ॥ ८ ॥ शुद्धये चतु: स्कंधमुक्तं आराधनाया ईदृशम् । सर्वविकल्पविमुक्तः शुद्ध आत्मा निरालंबः ॥ ८ ॥
उत्तं प्रोक्तं । किं तत् । चउखंधं चतुःस्कंधं चतुर्णां सम्यग्दर्शनादीनां समुदायः । कस्याः । आराहणाए आराधनायाः। कस्मिन्। सुद्धणये निश्चयनये । कीदृशमुक्तं । एरिसिय ईदृशं । ईदृशमिति कीदृशं । अप्पा आत्मा जीवः । कथंभूतः । सव्ववियप्पविमुक्तो सर्वविकल्पविमुक्तः सर्वे च ते विकल्पाश्च कर्तृकर्मादयस्तैर्विमुक्तः विशेषेण मुक्तो रहितः । पुनः कथंभूतः । शुद्धः कर्ममलकलंक विवर्जितः । पुनरपि कथंभूतः । निरालंबो निरालंब: पंचेंद्रियविषयसुखाद्यालंबनरहित: । किन्तु चिच्चमत्कारशुद्धपरमात्मस्वरूपालंबन इत्यर्थ इति विशेषः ॥ ८ ॥
इस प्रकार इन चार प्रकार की व्यवहार आराधनाओं की भन्यों को आराधना करनी चाहिए ऐसी जिनेन्द्र भगवान की आज्ञा T
जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कथित बाह्याभ्यंतर दो प्रकार (१२ प्रकार) के तपश्चरण में अपनी शक्ति के अनुसार जो भक्तिपूर्वक प्रवृत्ति करता है, चारित्र को निर्मल करने वाले तपश्चरण में उद्यमी रहता है, वह शीघ्र ही कुकर्मों के समूह का नाश करके सम्यक् प्रकार से की गई परम ब्रह्म की आराधना से उत्पन्न चिदानन्द पद को प्राप्त करता है ॥७ ॥
इस प्रकार देवसेन आचार्य निश्चय आराधना की कारणभूत व्यवहार आराधना का कथन करके अब निश्चय आराधना का प्रतिपादन करते हैं
शुद्ध निश्चयनय से यह आत्मा सर्व विकल्पों से रहित, इन्द्रिय-विषयों के अवलम्बन को छोड़कर निरालम्ब होकर शुद्धात्मा की आराधना करता है, उसे ही चार प्रकार की आराधना कहा # 112 11
शुद्ध निश्चय नय से आत्मा में कर्त्ता कर्म, राग-द्वेष आदि कोई विकल्प नहीं हैं अतः आत्मा सर्व विकल्पों से रहित है। निश्चय नय से आत्मा कर्म - कलंक से रहित है अतः शुद्ध है। निश्चय नय से आत्मा पंचेन्द्रियों के विषय - व्यापार और तत्सम्बन्धी सुखाभिलाषाओं से रहित है अतः निरालम्ब हैं।
निश्चय नय से चित् चमत्कार, अनन्त दर्शन, ज्ञान, सुख, वीर्य, अनन्त चतुष्टय का धारी आत्मा है, उसमें रमण करना ही चार प्रकार की आराधना है।