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आराधनासार-५
अथ संसार-महापारावारपारासन्न प्रदेशस्थेन निरुपाधिनिरुपद्रवाविनश्वरसनातनानंत - सौख्यसमुदायोपायचिंत्तनं निर्गमिनिरंतरकालेन सिद्धालयवेलापत्तनं जिगमिषुणा जिनोदितभेदाभेदरत्नत्रयपोतसमारू हे न स्वभावोत्थितपरम करुणारसपूरप्रभावेण भवदुःखाग्निदंदह्यमानानन्यानपि भव्यजीवांस्तद्योग्योपदेशव-चनैस्तत्रारोप्य पारं कर्तुकामेन स्वयं कर्णधारायमानेन स्वयमेव सार्थवाहाधिपायमानेन तन्मार्गलग्नशीघ्रतरप्रधाबमानमहामोहाभिधानचौरनरेन्द्रकिंकरीभूतविषय - कषायलुंटाकभीतिनिराकरणाय समाश्रितसकलसिद्धांतरहस्यभूतनिश्चयव्यवहारभेदभिन्नचतुर्विधाराधनाग्रंथसंग्रथितपरमशब्दब्रह्मप्रयत्नेन अनेकांतमरुन्मार्गस्त-यमानेन श्रेयोमार्गसंसिद्धिशिष्टाचारप्रपालननास्तिक्यपरिहारार्थनिर्विघ्नपरिसमाप्तिफलनमा भिलायुके पसन्द कायसद्धिमिरगुणसमृद्धानां सिद्धानां
शब्दार्थ:- अथ अब । संसारमहापारावारपारासन्नप्रदेशस्थेन-संसार रूपी समुद्र के निकट स्थित । निरुपाधिनिरुपद्रवाविनश्वासनातनानंत सौख्य समुदायोपायचिंतन उपाधिरहित, उपद्रवरहित, अविनश्वर, सनातन अनन्त सुख के समुदाय के उपाय के चिन्तन में। निर्गमित निरंतरकालेन=निकल रहा है निरन्तर काल जिनका। सिद्धालयवेलापत्तनं सिद्धालय रूपी नगर को। जिगमिषुणा प्राप्त करने की इच्छा करने वाले। जिनोदित भेदाभेदरत्नत्रय पोत समारूढेन= जिनेन्द्र भगवान कथित भेद और अभेद रूप दो प्रकार के रत्नत्रय के जहाज पर आरूढ़ । स्वभावोत्थित परम करुणा रस पूर प्रभावेण= स्वभाव से उत्पन्न परम करुणारस के पूर से प्रभावित। भवदुःखाग्निदंदह्यमानान् संसार दुःख रूपी अग्निके द्वारा जलते हुए। अन्यान् अन्य। भव्यजीवान् = भव्यजीवों को। अपि- भी। तद्योग्योपदेशवचनैः= उनके योग्य उपदेश वचन के द्वारा। तत्र उस रत्नत्रयरूपी नौका पर। आरोप्य आरूढ़ कराकर । पार-संसार समुद्र को पार । कर्तुं कराने की | कामेन - इच्छा वाले। स्वयं आप। कर्णधारायमानेन- कर्णधार के समान आचरण कर रहे हैं और। स्वयं एव= स्वयं ही। सार्थवाहाधिपायमानेन सार्थवाह अधिप है। तन्मार्गलग्न शीघ्रतर प्रधावमान महामोहाभिधान चौरनरेन्द्र किंकरी भूत विषय कथायलँटाक भीति निराकरणाय= मोक्षमार्गगामी के पीछे शीघ्रतर दौड़ते हुए महा मोहनामक चौर नरेश के किंकरभूत विषयकषाय रूपी लुटेरों की भीति को दूर करने के लिए। समाश्रित सकल सिद्धान्त रहस्यभूत निश्चयव्यवहार भेद भिन्न चतुर्विधाराधना ग्रंथ संग्रथित परम शब्द ब्रह्मप्रयत्नेन=आश्रय लिया है सकल सिद्धान्त के रहस्यभूत निश्चय व्यवहार भेद से भिन्न चार प्रकार के आराधना ग्रन्थ से संग्रथित परम शब्द ब्रह्म के प्रयत्न का जिन्होंने। अनेकान्तमरुन्मार्गस्तर्यायमानेन= अनेकान्तरूपी आकाशमार्ग में सूर्य के समान आचरण करने वाले। श्रेयोमार्ग-संसिद्धि शिष्टाचार-परिपालन नास्तिक्यपरिहारार्थं निर्विघ्न-परिसमाप्तिफल चतुष्टयाभिलाषुकेण=श्रेयोमार्गकी सिद्धि, शिष्टाचार का पालन, नास्तिकता का परिहार और शास्त्रकी निर्विघ्न परिसमाप्ति रूप चार फलों के अभिलाषी। महावीर विशेषण संयुक्त महावीर विशेषण से युक्त । परम सम्यक्त्वाद्यष्ट प्रसिद्ध विमलतर गुण समृद्धानां परम सम्यग्दर्शनादि