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।।ॐ ह्रीं श्रीचतुर्विंशतिजिनेन्द्रेभ्यो नमः ।।
॥ॐ ह्रीं श्रीमहावीरस्वामिने नमः ।। ॥ॐ ह्रीं श्रीशांनिधीरचन्द्रशिवधर्माजितसूरिभ्यो नमोनमः ।।
श्रीमद् देवसेनाचार्यविरचितः
आराधनासार:
(श्री रत्नकीर्तिदेव विरचित संस्कृतटीका सहित)
* मंगलाचरण * सिद्धानाराधनासार-फलेन फलितात्मनः।
ध्यात्वा व्याख्यानतीर्थेन स्वस्यात्मानं पुनाम्यहम् ॥१॥ अन्वयार्थ - आराधनासारफलेन फलितात्मन: आराधना के सार से फलित है आत्मा जिसका ऐसे। सिद्धान्-सिद्धों को। ध्यात्वा ध्यान करके। व्याख्यानतीर्थेन व्याख्यानरूपी तीर्थ से । स्वस्य अपनी। आत्मानं आत्मा को । अहं-मैं । पुनामि पवित्र करता हूँ।
___ भावार्थ - 'राध संसिद्धौ गध धातु सिद्धि अर्थ में होती है। अथवा-"आराधनं साधने स्यादवाप्ती तोषणेऽपि च।” आराधन शब्द साधन, प्राप्ति और तोषण अर्थ में आता है। अत: जिससे साध्य की सिद्धि होती है उसे आराधना कहते हैं।