________________
*
१९७
अनन्तसुख स्वभाव से युक्त मुझको कोई भी व्याधि आदि नहीं है, ये सब शरीर के होते हैं, ऐसा उपदेश आत्मा के शुद्ध स्वभाव का चिन्तन म्यान से तलवार के समान शरीर से आत्मा के भिन्न करने का उपदेश आर्त्त-रौद्रध्यान को छोड़कर आत्मा को आत्मस्वभाव में स्थिर करने का उपदेश
* *
१९८
आराधना का फल
आत्मध्यान के बिना मोक्ष नही होता
२०७
सर्व परिग्रह के त्यागी आत्मा का ध्यान कर नियम से सिद्ध होते हैं * आराधनासार का उपदेश देने वाले आचार्यों को ग्रन्थकार का वन्दन
ग्रन्थकार का लघुताप्रदर्शन और क्षमायाचना करते हुए समारोप * संस्कृत टीकाकार की प्रशस्ति