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आराधनासार-१३८
नन्विन्द्रियमल्लैर्निहितानां क्वाश्रयोऽज्ञानिनां भवति तत्प्रतिपादयति
इंदियमल्लेहिं जिया अमरासुरणरवराण संघाया। सरणं विसयाण गया तत्वांव मण्णांते सुक्खाइ॥५६॥
इंद्रियमल्लैर्जिता अमरासुरनरवराणां संघाताः।
शरण विषयाणां गतास्तत्रापि मन्यते सौख्यानि ।।५६॥ अमरासुरनरवराणां संघाताः संतो विषयाणां शरणं गतास्तत्रापि सौख्यानि मन्यते। तथाहिंअमरासुरणरवराण अमरासुरनरवराणां अमरा देवाः कल्पवासिनः असुरा: दैत्या भवनवासिनो वा नरवराः नराणां मध्ये वराः श्रेष्ठा: मनुष्येषु मध्ये शास्त्रेण शौर्येण वीर्येण विज्ञानेन लब्धप्रतिष्ठा ये ते नरवरा: कथ्यते, अमराश्च असुराश्च नरवराश्च ते अमरासुरनरवरास्तेषां संधाया संघाता: समुदायाः । कथंभूताः संतः । इंदियमल्लेहिं जिया इंद्रियमल्लैर्जिताः संत: इंद्रियाण्येव मल्लानि विड्दुःखावाससंसारगर्भपातकत्वात् इंद्रियमल्लास्तैः इंद्रियमल्लेः। गया गता प्राप्ताः । किं शरणं आश्रयं केषां। बिसयाणं विषयाणां इन्द्रियार्थानां तत्थवि तत्रापि च तत्र तेषु स्रक्चंदनवनितावा-तायनादिषु विषयेषु मण्णंति मन्यते विदंति। कानि। सुक्खाइ सौख्यानि न खल्वियं प्रवृत्तिस्तत्त्वविदा चित्तेषु चमच्चरिकरीति नैते. विषयाः शरणं गतानां स्वप्नेपि त्रायकाः । यदुक्तं
मीना मृत्यु प्रयाता रसनवशमिता दंतिनः स्पर्शरुद्धा, नद्धास्ते वारिमध्ये ज्वलनमुपगताः पत्रिणश्चाक्षिदोषात् । भुंगा गंधोद्धताशा: प्रलयमुपगता गीतलोला: कुरंगाः,
कालव्यालेन दष्टास्तदपि तनुधियामिंद्रियार्थेषु रागः।। इन्द्रियमल्लों के द्वारा दुःखित हुए अज्ञानी किसकी शरण जाते हैं, उनकी क्या गति होती है, इसका प्रतिपादन करते हैं
इन्द्रियमल्लों के द्वारा जीते गये (विषयों के वशीभूत हुए) देव, असुर और श्रेष्ठ मनुष्यों के समूह विषयों की शरण में जाते हैं और उसी में सुख का अनुभव करते हैं ।।५६।।
कल्पवासी देवों को सुर कहते हैं और भवनवासी देवों को असुर वा दैत्य कहते हैं। मनुष्यों के मध्य में शास्त्रज्ञान, शूरता-वीरता और विज्ञान के द्वारा जिन्होंने प्रतिष्ठा प्राप्त की है वे नर-वर कहलाते हैं। सुर, असुर और नर-वरों का समूह अमर-असुर-नर-वर-संघात कहलाता है।
दु:ख के स्थान संसार के गर्त (गडे) में गिराने वाले इन्द्रियमल्लों के द्वारा पराजित हुए देव, असुर और श्रेष्ठ मानवों के समूह इन्द्रिय-विषयों की शरण में जाते हैं और उन माला, चन्दन, स्त्री तथा उत्तम- उत्तम पक्वान्न रूप इन्द्रियविषयों के उपभोग में ही आनन्द का अनुभव करते हैं, सुख मानते हैं। परन्तु ये पंचेन्द्रियजन्य विषय वास्तव में सुख के कारण नहीं हैं। ये पदार्थ तत्त्वज्ञों के हृदय को रंजायमान करने वाले नहीं हैं। ये पंचेन्द्रिय-विषय स्वप्न में भी सुखद नहीं हैं, रक्षक नहीं हैं, शरणभूत नहीं हैं अपितु दु:खदायक हैं। सो ही कहा है
रसना इन्द्रिय की वशीभूत हुई मछली जाल में फंसकर अपने प्राण खो देती है, मृत्यु को प्राप्त होती है। स्पर्शन इन्द्रिय के वशीभूत हुआ मदोन्मत्त हाथी बन्धन में पड़कर अनेक दुःखों को भोगता है। प्राण इन्द्रिय के विषय का लोलुपी भ्रमर कमल में फंसकर मर जाता है। चक्षुइन्द्रिय के परवश होकर पतंगा अग्नि में गिरकर प्राण खोता