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आराधनासार-२००
णाणमयभावणाए ज्ञानमयभावनया ज्ञानेन निर्वृत्ता यासौ भावना वासना सा ज्ञानमयभावना तया ज्ञानमयभावनया भावियचित्तेहिं भावितचित्तैर्वासितांतरंगैः पुरिससीहेहि पुरुषसिंहः पुरुषप्रधानैः। अत्र प्रशस्यवाची पुरुषदस्यांते सिंहशब्दः अमरकोशाधमिधानेषूक्तवान्। अचेयणादीय अचेतनादिका चउभेया चतुर्भेदाश्चतुःप्रकारा: महोवसम्गा महोपसर्गा: महांतश्चते उपसर्गाश्च महोपसर्गाः । महांतश्चेति विशेषणे कृते कोर्थः । तैरपि पुमपापिहेमनगानि नोत्रिशेगसितैः गोडं पावणा नान्यः सामान्यैः कानरत्वेनासहमानत्वादित्यर्थः सहिया सोढाः 'वह मर्षणे' क्षमिता योगधैर्याविर्भावहेतुभूताया बाधाया सत्यामपि मनसि मनसा वा येषा सहन न सर्वो भवतीति किंतु निर्जरार्थं तेषामपि सहनमेवेत्यर्थः ॥४८॥
ननु चेतनादयश्चतुर्भेदा उपसर्गा निर्दिष्टास्ते के कैश्च ते सोढा इति प्रश्ने कृते गाथापूर्वार्धनाचेतनाकृतोपसर्गा अपरार्धेन तिर्यक्कृतश्च अचेतनकृतोपसर्गसोढारं शिवभूतिनामादिं कृत्वा प्रथयति
सिवभूइणा विसहिओ महोवसम्गो हु चेयणारहिओ। सुकुमालकोसलेहि य तिरियंचकओ महाभीमो॥४९ ।।
सिंह शब्द प्रशंसनीय वा प्रधानवाची है। अमरकोश में लिखा है कि सिंह, वृषभ, गज आदि शब्द श्रेष्ठ अर्थ में होता है जैसे पुरुषसिंह, मुनिपुंगव, भुनिकुंजर इत्यादि ।
सामान्य से उपसर्ग एक प्रकार का है, चेतन-अचेतन के भेद से दो प्रकार का है। चेतन उपसर्ग तिर्यचकृत, देवकृत और मनुष्यकृत के भेद से तीन प्रकार का है। तथा अचेतनकृत, देवकृत, मनुष्यकृत और तिर्यंच कृत के भेद से चार प्रकार का है।
कातर पुरुष उपसर्ग सहन नहीं कर सकते हैं अतः पुरुषसिंह कहा है। ज्ञानमय भावना के द्वारा महान् पुरुषों को अचेतन आदि चार प्रकार के उपसर्गों को सहन करना चाहिए । कायर पुरुष तथा मनाक भी मन विक्षिप्त वाले पुरुष उपसर्ग सहन नहीं कर सकते।
षह धातु मर्षण अर्थ वा क्षमा अधं में है। किसी सांसारिक कारणवश कष्टों को सहन करना सरल है। परन्तु निर्जरा और आत्मविशुद्धि की प्राप्ति के लिए कितने ही प्रकार की बाधा आने पर भी योग, धैर्य के द्वारा वा आत्मचिन्तन के द्वारा मानसिक भावनाओं से महोपसर्गों को सहन करना कठिन है। अत: सांसारिक भोगवाञ्छाओं से रहित होकर कर्मनिर्जरार्थ उपसर्ग सहन करना चाहिए ।।४८ ।।
चेतनादि चार प्रकार के उपसर्गों का निर्देश किया है। वे उपसर्ग किन्होंने सहन किये हैं? ऐसा पूछने पर आचार्य-देव गाथा के पूर्वार्ध में अचेतन कृत उपसर्ग सहन करने वालोंका और गाथा के अपराध द्वारा तिर्यञ्चकृत उपसर्ग सहन करने वाले शिवभूति आदि के नाम मात्र का कथन करते हैं
शिवभूति नामक मुनिराज ने अचेतनकृत महा-उपसर्ग सहन किया था और सुकुमाल और सुकोशल मुनिराज ने तिर्यचकृत महा भयंकर उपसर्ग सहन किया था ।।४९ ॥