________________
अन्तर्द्वन्द्वों के पार
शिलाखण्डों में चीटियों आदि की बांबियाँ अंकित की गयी हैं और कुछेक में से सर्पों को निकलते हुए अंकित किया गया है। इसी प्रकार दोनों ही ओर से freeती हुई माधवी लताओं को पाँव और जाँघों से लिपटती और कन्धों तक बढ़ती हुई अंकित किया गया है, जिनका अन्त पुष्पों या बेरियों के बौर- गुच्छों के रूप में होता है । गोम्मेटश्वर के चरण जिस पादपीठ पर हैं वह पूर्ण विकसित कमल-रूप में है । कायोत्सर्ग-मुद्रा में गोम्मटेश्वर की इस विशाल वक्षयुक्त भव्य प्रतिमा के दोनों हाथ घुटनों तक लटके हुए हैं। दोनों हाथों के अंगूठे भीतर की ओर मुड़े हुए हैं मानो सब कुछ अन्तनिष्ठ है, सब कुछ सहज-स्वाभाविक और स्वतःस्फूर्त है ।
66
विस्मयकारी है समूचे शरीर पर दर्पण की भाँति चमकती पॉलिश, जिससे भूरे-श्वेत ग्रेनाइट प्रस्तर के दाने आलोकित हो उठे हैं। ऊँचे पहाड़ी शिखर पर खुले आकाश में स्थित प्रतिमा को धूप, ताप, शीत, वर्षा, धूल, और आँधी के थपेड़ों से बचाने में इस पॉलिश ने रक्षा कवच का कार्य किया है। यह ऐसा तथ्य है जिसे इस प्रतिमा के निर्माताओं ने भलीभांति समझ लिया था । ऐलोरा और अन्य स्थानों की गोम्मट प्रतिमाओं से भिन्न, इस मूर्ति की देह के चारों ओर सर्पिल लताएँ बड़े ही सधे कोशल के साथ अंकित की गयी हैं। उनके पल्लव एक-दूसरे से उचित आनुपातिक दूरी पर इस प्रकार अंकित किये गये हैं कि उनसे प्रतिमा की भव्यता कम न हो ।
किन्तु शिल्पी का मानव - प्रयत्न कभी भी परिपूर्ण नहीं हो सका, अतः अहंकार के उच्छेद के लिए कलाकार ने मूर्ति की एक अंगुली को उसके अनुपात से छोटा बनाकर जानबूझकर ही अपनी लघुता का परिचय दिया है।
गोम्मटेश्वर द्वार की बाईं ओर एक पाषाण पर शक संवत् 1102 का शिलालेख है जिसमें कन्नड़ कवि बोप्पण पण्डित ने मूर्ति की कला पर मुग्ध होकर कहा है : अतितुंगाकृतियादोडा गदद रोल्सोन्दय्र्यमौन्नत्यभुं नुतसीन्दय्र्यमुमागे मत्ततिशयंतानागदौन्नत्यमुं । नुतसौन्दर्य मुमूर्जितातिशयतुं तन्नल्लि निन्दिर्द्धवें क्षितिसम्पूज्यमो गोटेश्वरजिनश्रीरूपमात्मोपमं ॥
"जब मूर्ति आकार में बहुत ऊँची और बड़ी होती है तब उसमें प्राय: सौन्दर्य का अभाव रहता है । यदि बड़ी भी हुई और सौन्दर्य बोध भी हो तो उसमें देवी प्रभाव का अभाव खटकता है। लेकिन यहाँ तीनों के मेल से संसार द्वारा पूजित गोम्मटेश्वर की छटा अपूर्व हो गई ।”
मूर्ति के दर्शनों का सौभाग्य जिसे भी मिलता है वह अलौकिक पावनता के प्रभाव से पवित्र हो जाता है । आँखें टकटकी बाँधे स्तम्भित, हृदय गद्गद, शरीर रोमांचित और भावनाएँ शान्ति के अजस्र गंगाजल से प्रक्षालित हो जाती हैं ।