________________
श्रवणबेलगोल में बाहुबली की मूर्ति प्रतिष्ठापना
अशोभन है ? यदि ऐसा होता तो प्रकृति को भी इसके लिए लज्जा आती । फूल नंगे रहते हैं; पशु-पक्षी भी नंगे ही रहते हैं; प्रकृति के साथ जिनकी एकता बनी हुई है वे शिशु भी नंगे रहते हैं । उनको अपनी नग्नता में लज्जा नहीं लगती । उनकी ऐसी स्वाभाविकता के कारण ही हमें भी उनमें लज्जा जैसी कोई चीज़ नहीं दिखाई देती । लज्जा की बात जाने दीजिए। इस मूर्ति में कुछ भी अश्लील, बीभत्स, जुगुप्सित, अशोभन और अनुचित लगता है - ऐसा किसी भी मनुष्य का अनुभव नहीं । इसका कारण क्या है ? यही कि नग्नता एक प्राकृतिक स्थिति है । मनुष्य ने विकारों को आत्मसात् करते-करते अपने मन को इतना अधिक विकृत कर लिया है कि स्वभाव से सुन्दर नग्नता उससे सहन नहीं होती । दोष नग्नता का नहीं, अपने कृत्रिम जीवन का है। बीमार मनुष्य के आगे पके फल, पौष्टिक मेवे या सात्विक आहार स्वतन्त्रतापूर्वक नहीं रखा जा सकता। यह दोष खाद्य पदार्थ का नहीं, बीमार की बीमारी का है । यदि हम नग्नता को छिपाते हैं तो नग्नता के दोष के कारण नहीं बल्कि मनुष्य के मानसिक रोग के कारण । नग्नता छिपाने में नग्नता की लज्जा नहीं है। वरन् उसके मूल में विकारी मनुष्य के प्रति दयाभाव है, उसके प्रति संरक्षण-वृत्ति है। ऐसा करने में जहाँ ऐसी श्रेष्ठ भावना नहीं होती, वहाँ कोरा दम्भ है ।
65
परन्तु जैसे बालक के सामने नराधम भी शान्त और पवित्र हो जाता है, वैसे ही पुण्यात्माओं तथा वीतरागों के सम्मुख भी मनुष्य, शान्त और गम्भीर हो है । जहाँ भव्यता है, दिव्यता है, वहाँ ही मनुष्य विनम्र होकर शुद्ध हो जाता है । यदि मूर्तिकार चाहते तो माधवी लता की एक शाखा को लिंग के ऊपर से कमर तक ले जाते और नग्नता को ढकना असंभव न होता। लेकिन तब तो बाहुबली भी स्वयं अपने जीवन-दर्शन के प्रति विद्रोह करते प्रतीत होते । जब बालक सामने आकर नंगे खड़े हो जाते हैं, तब वे कात्यायनी व्रत करती मूर्तियों की तरह अपनी नग्नता छिपाने का प्रयत्न नहीं करते। उनकी निरावरणता ही जब उन्हें पवित्र करती है, तब दूसरा आवरण उनके लिए किस काम का ?"
[ ध्यानमग्न होते हुए भी मुखमण्डल पर झलकते स्मित के अंकन में मूर्तिकार की महत् परिकल्पना और उसके कला-कौशल की चरम श्रेष्ठता के दर्शन होते हैं ।] सिर और मुखाकृति के अतिरिक्त, हाथों, उंगलियों, नखों, पैरों तथा एड़ियों का अंकन इस कठोर दुर्गम चट्टान पर जिस दक्षता के साथ किया गया है, वह आश्चर्यं की वस्तु है । सम्पूर्ण प्रतिमा को वास्तव में पहाड़ी की ऊँचाई और उसके आकारप्रकार से संतुलित किया है। परम्परागत मान्यता के अनुसार, पर्वत की जिस चोटी पर बाहुबली ने तपश्चरण किया था वह पीछे की ओर विद्यमान है, और आज भी इस विशाल प्रतिमा के पैरों और पार्श्वों के निकट आधार प्रदान किये हुए है, अन्यथा यह प्रतिमा और भी ऊँची होती ।,